________________ अष्टम स्थान ] [626 आठ कारणों से मायावी माया करके उसकी आलोचना करता है, प्रतिक्रमण करता है, निन्दा करता है, गर्दा करता है, व्यावृत्ति करता है, विशुद्धि करता है, 'मैं पुनः वैसा नहीं करूंगा' ऐसा कहने को उद्यत होता है, और यथायोग्य प्रायश्चित्त तथा तपःकर्म स्वीकार करता है / वे पाठ कारण इस प्रकार हैं 1. मायावी का यह लोक गहित होता है, 2. उपपात गहित होता है, 3. प्राजाति-जन्म गहित होता है / 4. जो मायावी एक भी मायाचार करके न आलोचना करता है, न प्रतिक्रमण करता है, न निन्दा करता है, न गर्दा करता है, न व्यावृत्ति करता है, न विशुद्धि करता है, न 'पुन: वैसा नहीं करूंगा', ऐसा कहने को उद्यत होता है, न यथायोग्य प्रायश्चित्त और तपःकर्म को स्वीकार करता है, उसके आराधना नहीं होती है। 5. जो मायावी एक भी बार मायाचार करके उसकी आलोचना करता है, प्रतिक्रमण करता है, निन्दा करता है, गर्दी करता है, व्यावृत्ति करता है, विशुद्धि करता है, 'मैं पुनः वैसा नहीं करूगा', ऐसा कहने को उद्यत होता है, यथायोग्य प्रायश्चित्त और तपःकर्म स्वीकार करता है, उसके अाराधना होती है। 6. जो मायावी बहत मायाचार करके न उसकी आलोचना करता है. न प्रतिक्रमण करता है न निन्दा करता है,न गर्दा करता है, न व्यावृत्ति करता है, न विशुद्धि करता है, न 'मैं पुनः वैसा नहीं करूगा', ऐसा कहने को उद्यत होता है, न यथायोग्य प्रायश्चित्त और तपःकर्म स्वीकार करता है, उसके आराधना नहीं होती है। 7. जो मायावी बहुत मायाचार करके उसकी आलोचना करता है, प्रतिक्रमण करता है, निन्दा करता है, गर्दी करता है, व्यावृत्ति करता है, विशुद्धि करता है. 'मैं पुन: वैसा नहीं करूंगा', ऐसा कहने को उद्यत होता है, यथायोग्य-प्रायश्चित्त और तपःकर्म स्वीकार करता है, उसके आराधना होती है। 8. मेरे प्राचार्य या उपाध्याय को अतिशायी ज्ञान और दर्शन उत्पन्न हो तो वे मुझे देख कर ऐसा न जान लेवें कि यह मायावी है ? अकरणीय कार्य करने के बाद मायावी उसी प्रकार भीतर ही भीतर जलता है जैसे-लोहे को गलाने की भट्टी, ताम्बे को गलाने की भट्टी, वपु (जस्ता) को गलाने की भट्टी, शीशे को गलाने की भट्टी, चांदी को गलाने को भट्टी, सोने को गलाने की भट्टी, तिल की अग्नि, तुष की अग्नि, भूसे की अग्नि, नलाग्नि (नरकट की अग्नि), पत्तों की अग्नि, मुण्डिका का चूल्हा, भण्डिका का चूल्हा, गोलिका का चूल्हा', घड़ों का पंजावा, खप्परों का पंजावा, ईटों का पंजावा, गुड़ बनाने की भट्टी, लोहकार की भट्टी तपती हुई, अग्निमय होती हुई, किंशुक फूल के समान लाल होती हुई, सहस्रों उल्काओं और सहस्रों ज्वालाओं को छोड़ती हुई, सहस्रों अग्निकरणों को फेंकती हुई, भीतर ही भीतर जलती है, उसी प्रकार मायावी माया करके भीतर ही भीतर जलता है। यदि कोई अन्य पुरुष आपस में बात करते हैं तो मायावी समझता है कि 'ये मेरे विषय __ में ही शंका कर रहे हैं !' 1. ये विभिन्न देशों में विभिन्न वस्तुओं को पकाने, राँधने आदि कार्य के लिए काम में आने वाले छोटे-बड़े चूल्हों के नाम हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org