________________ सप्तम स्थान ] [621 स्वाति आदि सात नक्षत्र उत्तरद्वार वाले कहे गये हैं / जैसे-- 1. स्वाति, 2. विशाखा, 3. अनुराधा, 4. ज्येष्ठा, 5. मूल, 6. पूर्वाषाढा, 7. उत्तराषाढा (146) / कूट-सूत्र १५०–जंबुद्दीवे दीवे सोमणसे वक्खारपवते सत्त कूडा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा सिद्ध सोमणसे या, बोद्धब्वे मंगलावतीकूडे / देवकुरु विमल कंचण, विसिटकूडे य बोद्धध्वे // 1 // जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सौमनस वक्षस्कार पर्वत पर सात कूट कहे गये हैं / जैसे--- 1. सिद्धकूट, 2. सौमनसकूट, 3. मंगलावतीकूट, 4. देवकुरुकूट, 5. विमलकूट, 6. कांचनकूट 7. विशिष्टकूट (150) / १५१–जंबुद्दीवे दीवे गंधमायणे वक्खारपवते सत्त कूडा पण्णत्ता, तं जहा सिद्ध य गंधमायण, बोद्धव्वे गंधिलावतीकडे / उत्तरकुरु फलिहे, लोहितक्खे प्राणंदणे चेव // 1 // जम्बूद्वीप नामक द्वीप में गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत पर सात कूट कहे गये हैं। जैसे१. सिद्धकूट, 2. गन्धमादनकूट, 3. गन्धिलावतीकूट, 4. उत्तरकुरुकूट. 5. स्फटिककूट. 3. लोहिताक्षकूट, 7. ग्रानन्दनकूट (151) / कुलकोटी-सूत्र १५२-बिइंदियाणं सत्त जाति-कुलकोडि-जोणीपमुह-सयसहस्सा पण्णत्ता। द्वीन्द्रिय जाति की सात लाख योनिप्रमुख कुलकोटि कही गई हैं (152) / पापकर्म-सूत्र १५३–जीवा णं सत्तटाणणिवत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा–णेरइयनिव्वत्तिते, (तिरिक्खजोणियणिव्वत्तिते, तिरिक्खजोणिणीणिव्वत्तिते, मणुस्सणिवत्तिते, मणुस्सोणिव्वत्तिते), देवणिवत्तिते, देवीणिव्वत्तिते। एवं-चिण-(उचिण-बंध-उदीर-वेद तह) णिज्जरा चेव / जीवों ने सात स्थानों से निर्वतित पुद्गलों का पापकर्मरूप से संचय किया है, करते हैं और करेंगे। जैसे१. नैरयिक निर्वतित पुद्गलों का, 2. तिर्यग्योनिक (तिर्यंच) नितित पुद्गलों का, 3. तिर्यग्योनिकी (तियंचनी) निर्वतित पुद्गलों का, 4. मनुष्य निर्वतित पुद्गलों का, 5. मानुषी निर्वर्तित पुद्गलों का, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org