________________ 620 ] [ स्थानाङ्गसूत्र अनुभाव-सूत्र १४३–सातावेयणिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तविधे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा–मणुण्णा सद्दा, मणुण्णा रूवा, (मणुण्णा गंधा, मणुण्णा रसा), मणुण्णा फासा, मणोसुहता, वइसुहता। साता-वेदनीय कर्म का अनुभाव सात प्रकार का कहा गया है / जैसे१. मनोज्ञ शब्द, 2. मनोज्ञ रूप, 3. मनोज्ञ गन्ध, 4. मनोज्ञ रस, 5. मनोज्ञ स्पर्श, 6. मनःसुख, 7. वचःसुख (143) / १४४-असातावेयणिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तविधे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा–अमणुण्णा सद्दा, (अमणुण्णा रूवा, अमणुग्णा गंधा, अमणुग्णा रसा, अमणुण्णा फासा, मणोदुहता), वइदुहता। असातावेदनीय कर्म का अनुभाव सात प्रकार का कहा गया है / जैसे१. अमनोज्ञ शब्द, 2. अमनोज्ञ रूप, 3. अमनोज्ञ गन्ध, 4. अमनोज्ञ रस, 5. अमनोज्ञ स्पर्श, 6. मनोदुःख, 7. वचोदुःख (144) / नक्षत्र-सूत्र १४५-महाणक्खत्ते सत्ततारे पण्णत्ते / मघा नक्षत्र सात ताराओं वाला कहा गया है (145) / १४६–अभिईयादिया णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पणत्ता, तं जहा--अभिई, सवणो, धणिटा, सतभिसया, पृथ्वभहवया, उत्तरभवया, रेवती। अभिजित् आदि सात नक्षत्र पूर्वद्वार वाले कहे गये हैं / जैसे१. अभिजित्, 2. श्रवण, 3. धनिष्ठा, 4. शतभिषक, 5. पूर्वभाद्रपद, 6. उत्तरभाद्रपद, 7. रेवती (146) / १४७–अस्सिणियादिया णं सत्त णयखत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा-अस्सिणी, भरणी, कित्तिया, रोहिणी, मिगसिरे, प्रद्दा, पुणव्वसू / अश्विनी आदि सात नक्षत्र दक्षिणद्वार वाले कहे गये हैं। जैसे१. अश्विनी, 2. भरणी, 3. कृत्तिका, 4. रोहिणी, 5. मृगशिर, 6. प्रार्द्रा, 7. पुनर्वसु (147) / १४८-पुस्सादिया णं सत्त णखत्ता प्रवरदारिया पण्णत्ता, तं जहा–पुस्सो, असिलेसा, मघा, पुव्वाफग्गुणी, उत्तराफग्गुणी, हत्थों, चित्ता। पुष्य आदि सात नक्षत्र पश्चिमद्वार वाले कहे गये हैं / जैसे१. पुष्य, 2. अश्लेषा, 3. मघा, 4. पूर्वफाल्गुनी, 5. उत्तरफाल्गुनी, 6. हस्त, 7. चित्रा १४६-सातियाइया णं सत्त गक्खत्ता उत्तरदारिया पग्णता, तं जहा-साती, विसाहा, अणुराहा, जेट्ठा, मूलो, पुवासाढा, उत्तरासाढा / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org