________________ 614] [ स्थानाङ्गसूत्र 1. बहुरत-निह्नव, 2. जीव प्रादेशिक-निह्नव, 3. अव्यक्तिक-निह्नव, 4. सामुच्छेदिक-निह्नव, 5. हूँ क्रिय-निह्नव. 6. त्रैराशिक-निह्नव, 7. अबद्धिक-निह्नव (140) / १४१-एएसि णं सत्तण्हं पवयणणिण्हमाणं सत्त धम्मायरिया हुत्था, तं जहा-जमाली, तीसगुत्ते, प्रासाढे, प्रासमित्ते, गंगे, छलुए, गोट्टामाहिले। इन सात प्रवचन-निह्नवों के सात धर्माचार्य हुए / जैसे१. जमाली, 2. तिष्यगुप्त, 3. आषाढ़भूति, 4. अश्वमित्र, 5. गंग. 6. षडुलूक 7. गोष्ठामाहिल (141) / १४२~एतेसि णं सत्तण्हं पवयणणिहगाणं सत्तउप्पत्तिणगरा हुस्था, तं जहासंग्रहणीनापा सावत्थी उसमपुरं, सेयविया मिहिलउल्लगातीरं / पुरिमंतरंजि दसपुरं, पिण्हगउप्पत्तिणगराई // 1 // इन सात प्रवचन-निह्नवों की उत्पत्ति सात नगरों में हुई / जैसे१. श्रावस्ती, 2 ऋषभपुर 3. श्वेतविका, 4. मिथिला, 5. उल्लुकातीर, 6. अन्तरंजिका, 7. दशपुर (142) / विवेचन-भगवान महावीर के समय में और उनके निर्वाण के पश्चात् भगवान महावीर की परम्परा में कुछ सैद्धान्तिक विषयों को लेकर मत-भेद उत्पन्न हुआ / इस कारण कुछ साधु भगवान् के शासन से पृथक् हो गये, उनका आगम में 'निह्नव' नाम से उल्लेख किया गया है। इनमें से कुछ वापिस शासन में आ गए. कुछ आजीवन अलग रहे / इन निह्नवों के उत्पन्न होने का समय भ. महावीर के कैवल्य-प्राप्ति के 16 वर्ष के बाद से लेकर उनके निर्वाण के 584 वर्ष बाद तक का है। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है 1. प्रथम निहव बहुरत-वाद-भ. महावीर के कैवल्य-प्राप्ति के 14 वर्ष बाद श्रावस्ती नगरी में बहरतवाद की उत्पत्ति जमालि ने की। वे कुण्डपुर नगर के निवासी थे। उनकी मां का नाम सुदर्शना और पत्नी का नाम प्रियदर्शना था। वे पांच सौ पुरुषों के साथ भ. महावीर के पास प्रवजित हुए। उनके साथ उनकी पत्नी भी एक हजार स्त्रियों के साथ प्रवजित हुई। जमालि ने ग्यारह अंग पढ़े और नाना प्रकार की तपस्याएं करते हुए अपने पाँच सौ साथियों के साथ ग्रामानुग्राम विहार करते हुए वे श्रावस्ती नगरी पहुंचे। घोर तपश्चरण करने एवं पारणा में रूखा-सूखा पाहार करने से वे रोगाक्रान्त हो गये। पित्तज्वर से उनका शरीर जलने लगा। तब बैठने में असमर्थ होकर अपने साथी साधुओं से कहा- श्रमणो ! विछौना करो'। वे विछोना करने लगे। इधर वेदना बढ़ने लगी और उन्हें एक-एक क्षण बिताना कठिन हो गया। उन्होंने पूछा-'विछौना कर लिया?' उत्तर मिला--'विछौना हो गया। जब वे विछौने के पास गये तो देखा कि विछौना किया नहीं गया, किया जा रहा है। यह देख कर वे सोचने लगे-भगवान् 'क्रियमाण' को 'कृत' कहते हैं, यह सिद्धान्त मिथ्या है। मैं प्रत्यक्ष देख रहा है कि विछौना किया जा रहा है, उसे 'कृत' कैसे माना जा सकता है ? उन्होंने इस घटना के आधार पर यह निर्णय किया-'क्रियमाण को कृत नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org