________________ 612] [स्थानाङ्गसूत्र अप्रशस्त वाग्-विनय सात प्रकार का कहा गया है / जैसे१. पापक वाग-विनय--पाप-युक्त वचन बोलना / 2. सावध वाग-विनय-सदोष वचन बोलना। 3. सक्रिय वाग्-विनय-पाप क्रिया करने वाले वचन बोलना। 4. सोपक्लेश वाग्-विनय---क्लेश-कारक वचन बोलना। 5. आस्रवकर वाग-विनय-कर्मों का प्रास्रव करने वाले वचन बोलना। 6. क्षयिकर वाग्-विनय-प्राणियों का विघात-कारक वचन बोलता। 7. भूताभिशंकन वाग्-विनय-प्राणियों को भय-शंकादि उत्पन्न करने वाले वचन बोलना १३५–पसत्थकाविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा–पाउत्तं गमणं, पाउत ठाणं, पाउत्तं णिसीयणं, पाउत्तं तुपट्टणं, आउत्तं उल्लंघणं, पाउत्तं पल्लंघणं, पाउत्तं सन्विदियजोगजुंजणता। प्रशस्त काय-विनय सात प्रकार का कहा नया है / जैसे१. आयुक्त गमन-यततापूर्वक चलना / 2. आयुक्त स्थान–यतनापूर्वक खड़े होना, कायोत्सर्ग करना / 3. आयुक्त निषीदन–यतनापूर्वक बैठना। 4. प्रायुक्त त्वग-बर्तन-यतनापूर्वक करवट बदलना, सोना। 5. आयुक्त उल्लंघन-यतनापूर्वक देहली आदि को लांघना। 6. आयुक्त प्रलंघन---यतनापूर्वक नाली आदि को पार करना / 7. आयुक्त सर्वेन्द्रिय योगयोजना-यतनापूर्वक सब इन्द्रियों का व्यापार करना (135) / १३६–अपसत्थकायविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा–प्रणाउत्तं गमणं, (अणाउत्तं ठाणं, प्रणाउत्तं णिसोयणं, अणाउत्तं तुअट्टणं, अणाउत्तं उल्लंघणं, प्रणाउत्तं पल्लंघणं), प्रणाउत्तं सविदियजोगजुजणता। अप्रशस्त कायविनय सात प्रकार का कहा गया है / जैसे१ अनायुक्त गमन-अयतनापूर्वक चलना / 2. अनायुक्त स्थान-अयतनापूर्वक खड़े होना / 3. अनायुक्त निषीदन-अयतनापूर्वक बैठना। 4. अनायुक्त त्वरवर्तन-अयतनापूर्वक सोना, करवट बदलना / 5. अनायुक्त उल्लंघन-अयतनापूर्वक देहली आदि को लांघना / 6. अनायुक्त प्रलंघन-अयतनापूर्वक नाली आदि को लांधना / 7. अनायुक्त सर्वेन्द्रिय योगयोजना- अयतनापूर्वक सब इन्द्रियों का व्यापार करना (136) / १३७–लोगोव्यारविणए सतविधे पण्णते, त जहा- अब्भासत्तित्तं परच्छंटाणवत्तिन कज्जहेउं, कतपडितिता, अत्तगवेसणता, देसकालण्णता, स्वत्थेसु अपडिले मता ! लोकोपचार विनय सात प्रकार का कहा गया है। जैसे 1 अभ्यासत्तित्व-श्रु तग्रहण करने के लिए गुरु के समीप बैठना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org