________________ सप्तम स्थान ] [611 प्रशस्त मनोविनय सात प्रकार का कहा गया है / जैसे१. अपापक-मनोविनय-पाप-रहित निर्मल मनोवृत्ति रखना। 2. असावद्य मनोविनय सावध, गहित कार्य करने का विचार न करना। 3. अक्रिय मनोविनय-मन को कायिकी, प्राधिकरणिकी आदि क्रियाओं में नहीं लगाना। 4. निरुपक्लेश मनोविनय-मन को क्लेश, शोक आदि में प्रवृत्त न करना। 5. अनास्रवकर मनोविनय-मन को कर्मों का प्रास्रव कराने वाले हिंसादि पापों में नहीं लगाना। 6. अक्षयिकर मनोविनय-मन को प्राणियों के पीड़ा करने वाले कार्यों में नहीं लगाना / 7. अभूताभिशंकन मनोविनय-मन को दूसरे जीवों को भय या शंका आदि उत्पन्न करने ___ वाले कार्यों में नहीं लगाना (131) / १३२–अपसत्यमणविणए सत्तविधे पण्णते तं जहा–पायए, सावज्जे, सकिरिए, सउवक्केसे, अण्हयकरे, छविकरे, भूतामिसंकणे / अप्रशस्त मनोविनय सात प्रकार का कहा गया है / जैसे१. पापक-अप्रशस्त मनोविनय-पाप कार्यों को करने का चिन्तन करना / 2. सावध अप्रशस्त मनोविनय---गहित, लोक-निन्दित कार्यों को करने का चिन्तन करना / 3. सक्रिय अप्रशस्त मनोविनय-कायिकी आदि पापक्रियाओं के करने का चिन्तन करना। 4. सोपक्लेश अप्रशस्त मनोविनय-क्लेश, शोक आदि में मन को लगाना। 5. प्रास्रवकर अप्रशस्त मनोविनय-कमों का आस्रव कराने वाले कार्यों में मन को लगाना। 6. क्षयिकर अप्रशस्त मनोविनय-प्राणियों को पीडा पहुँचाने वाले कार्यों में मन को लगाना। 7. भूताभिशंकन अप्रशस्त मनोविनय-दूसरे जीवों को भय, शंका आदि उत्पन्न करने वाले ___ कार्यों में मन को लगाना (132) / १३३–पसत्थवइविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा--अपावए, असावज्जे, (अकिरिए, णिरुवक्केसे, अणण्हयकरे, अच्छविकरे), अभूताभिसंकणे / प्रशस्त वाग्-विनय सात प्रकार का कहा गया है / जैसे१. अपापक-वाग-विनय-निष्पाप वचन बोलना। 2. असावद्य-वाग्-विनय-निर्दोष वचन बोलना। 3. अक्रिय-वाग्-विनय-पाप-क्रिया-रहित वचन बोलना। 4. निरुपक्लेश वाग्-विनय-क्लेश-रहित वचन बोलना / 5. अनास्रवकर वाग्-विनय-कर्मों का आस्रव रोकने वाले वचन बोलना। 6. अक्षयिकर वाग-विनय-प्राणियों का विघात-कारक वचन न बोलना / 7. अभूताभिशंकन वाग्-विनय--प्राणियों को भय-शंकादि उत्पन्न करने वाले वचन न बोलना (133) / १३४---अपसत्थवइविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा-पावए, (सावज्जे, सकिरिए, सउवक्केसे, अण्हयकरे, छविकरे), भूतामिसंकणे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org