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________________ [स्थानाङ्गसूत्र शुक्र के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में 40 हजार देव हैं। सहस्रार के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में 30 हजार देव हैं। प्राणत के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में 20 हजार देव हैं। अच्युत के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में 10 हजार देव हैं। देवों का उक्त परिमाण इस गाथा के अनुसार जानना चाहिए चौरासी हजार, अस्सी हजार, बहत्तर हजार, सत्तर हजार, साठ हजार, पचास हजार, चालीस हजार, तीस हजार, बीस हजार, और दश हजार है। उक्त सर्व देवेन्द्रों की शेष कक्षाओं के देवों का प्रमाण पहली कक्षा के देवों के परिमाण से सातवीं कक्षा तक दुगुना-दुगुना जानना चाहिए (128) / वचन-विकल्प-सूत्र १२६–सत्तविहे वयणविकप्पे पण्णत्ते, तं जहा पालावे, प्रणालावे, उल्लावे, अणुल्लावे, संलावे, पलावे, विष्पलावे / / वचन-विकल्प (बोलने के भेद) सात प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. पालाप कम बोलना। 2. अनालाप-खोटा बोलना। 3. उल्लाप-काकु ध्वनि-विकार के साथ बोलना। 4. अनुल्लाप–कुत्सित ध्वनि-विकार के साथ बोलना / 5. संलाप—परस्पर बोलना / 6. प्रलाप-निरर्थक बकवाद करना। 7. विप्रलाप-विरुद्ध वचन बोलना (126) / विनय-सूत्र १३०-सत्तविहे विणए पण्णते, तं जहाणाणविणए, दंसणविणए, चरित्तविणए, मणविणए, वइविणए, कायविणए, लोगोवयारविणए। विनय सात प्रकार का कहा गया है। जैसे१. ज्ञान-विनय-ज्ञान और ज्ञानवान की विनय करना, गुरु का नाम न छिपाना आदि / 2. दर्शन-विनय-सम्यग्दर्शन और सम्यग्दष्टि का विनय करना, उसके आचारों का पालन करना। 3. चारित्र-विनय--चारित्र और चारित्रवान् का विनय करना, चारित्र धारण करना। 4. मनोविनय-मन की अशुभ प्रवृत्ति रोकना, शुभ प्रवृत्ति में लगाना / 5. वाग्-विनय-वचन को अशुभ प्रवृत्ति रोकना, शुभ प्रवृत्ति में लगाना / 6. काय-विनय-काय की अशुभ प्रवृत्ति रोकना, शुभ प्रवृत्ति में लगाना / 7. लोकोपचार-विनय-लोक-व्यवहार के अनुकूल सब का यथायोग्य विनय करना (130) / १३१--पसत्यमणविणए सत्तविधे पण्णत्त, तं जहा--प्रपावए, प्रसावज्जे,अकिरिए, णिरुवक्कसे, अणण्हयकरे, मच्छविकरे, अभूताभिसंकणे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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