________________ सप्तम स्थान ] [606 असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के पदातिसेना के अधिपति द्रम की पहली कक्षा में 64 हजार देव हैं / दूसरी कक्षा में उससे दुगुने 128000 देव हैं। तीसरी कक्षा में उससे दुगुने 256000 देव हैं / इसी प्रकार सातवीं कक्षा तक दुगुने-दुगुने देव जानना चाहिए (124) / १२५–एवं बलिस्सवि, णवरं-महदुमे सट्टिदेवसाहस्सियो। सेसं तं चेव / इसी प्रकार वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के पदातिसेना के अधिपति महाद्रम की पहली कक्षा में 60 हजार देव हैं / आगे की कक्षाओं में क्रमशः दुगुने-दुगुने देव जानना चाहिए (125) / १२६–धरणस्स एवं चेव, णवरं-अट्ठावीसं देवसहस्सा / सेसं तं चेव / इसी प्रकार नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण के पदातिसेना के अधिपति भद्रसेन की पहली कक्षा में 28 हजार देव हैं। आगे की कक्षाओं में क्रमशः दुगुने-दुगुने देव जानना चाहिए (126) / १२७---जधा धरणस्स एवं जाव महाघोसस्स, गवरं--पायत्ताणियाधिपती अण्णे, ते पुवणिता। धरण के समान ही भूतानन्द से महाघोष तक के सभी इन्द्रों के पदाति सेनापतियों की कक्षाओं की देव-संख्या जाननी चाहिए। विशेष—उनके पदातिसेनापति दक्षिण और उत्तर दिशा के भेद से भिन्न-भिन्न हैं, जो कि पहले कहे जा चुके हैं (127) / १२८–सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो हरिणेगमेसिस्स सत्त कच्छायो पण्णत्तानो, तं जहा-पढमा कच्छा एवं जहा चमरस्स तहा जाव अच्चुतस्स / णाणत्तं पायत्ताणियाधिपतीणं / ते पुवमणिता / देवपरिमाणं इम--सक्कस्स चउरासीति देवसहस्सा, ईसाणस्स असीति देवसहस्साइं जाव अच्चुतस्स लहुपरक्कमस्स दस देवसहस्सा जाव जावतिया छट्ठा कच्छा तश्विगुणा सत्तमा कच्छा। देवा इमाए गाथाए अणुगंतव्वा चउरासीति असीति, बावत्तरी सत्तरी य सट्ठी य / पण्णा चत्तालीसा, तीसा वीसा य दससहस्सा // 1 // देवेन्द्र देवराज शक्र के पदातिसेना के अधिपति हरिनैगमेषी की सात कक्षाएँ कही गई हैं। जैसे—पहली कक्षा यावत् सातवीं कक्षा / जैसे चमर की कही, उसी प्रकार यावत् अच्युत कल्प तक के सभी देवेन्द्रों के पदातिसेना के अधिपतियों की सात-सात कक्षाएं जाननी चाहिए / उनके पदातिसेना के अधिपतियों के नामों की जो विभिन्नता है, वह पहले कही जा चुकी है। उनकी कक्षाओं के देवों का परिमाण इस प्रकार है शक्र के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में 84 हजार देव हैं / ईशान के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में 80 हजार देव है। सनत्कुमार के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में 72 हजार देव हैं। माहेन्द्र के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में 70 हजार देव हैं। ब्रह्म के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में 60 हजार देव हैं। लान्तक के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में 50 हजार देव हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org