________________ 608] [ स्थानाङ्गसूत्र 5. माठर--रथसेना का अधिपति / 6. श्वेत---नर्तकसेना का अधिपति / 7. तुम्बुरुगन्धर्वसेना का अधिपति (116) / १२०-ईसाणस्स पं देविंदस्स देवरण्णो सत्त अणिया, सत्त अणियाहिवई पण्णत्ता, तं जहा-पायत्ताणिए जाव गंधवाणिए।। लहुपरक्कमे पायत्ताणियाहिवती जाव महासेते णट्टाणियाहिवती, रते गंधवाणिताधिपती। देवेन्द्र देवराज ईशान की सात सेनाएँ और सात सेनापति कहे गये हैं। जैसे-- सेनाएँ-१. पदातिसेना 2. अश्वसेना 3. हस्तिसेना 4. महिषसेना 5. रथसेना 6. नर्तकसेना, 7. गन्धर्वसेना। सेनापति-१. लघुपराक्रम-पदातिसेना का अधिपति / 2. अश्वराज महावाय-अश्वसेना का अधिपति / 3. हस्तिराज पुष्पदन्त-हस्तिसेना का अधिपति / 4. महादाद्धि-महिषसेना का अधिपति / 5. महामाठर-रथसेना का अधिपति / 6. महाश्वेत-नर्तकसेना का अधिपति / 7. रत---गन्धर्वसेना का अधिपति (120) / 121- (जधा सक्कस्स तहा सन्वेसि दाहिणिल्लाणं जाव पारणस्स / जिस प्रकार शक के सेना और सेनापति कहे गये हैं, उसी प्रकार देवेन्द्र, देवराज सनत्कुमार, ब्रह्म, शुक्र, आनत और प्रारण इन सभी दक्षिणेन्द्रों की सात-सात सेनाएँ और सात-सात सेनापति जानना चाहिए / (121) १२२-जधा ईसाणस्स तहा सव्वेसि उत्तरिल्लाणं जाव प्रच्चुतस्स)। जिस प्रकार ईशान की सेना और सेनापति कहे गये हैं, उसी प्रकार देवेन्द्र देवराज माहेन्द्र, लान्तक, सहस्रार, प्राणत और अच्युत, इन सभी उत्तरेन्द्रों के भी सात-सात सेनाएँ और सात-सात सेनापति जानना चाहिए। (122) १२३–चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो दुमस्स पायत्ताणियाधिपतिस्स सत्त कच्छाम्रो पण्णत्तानो, तं जहा-पढमा कच्छा जाव सत्तमा कच्छा। असुरेन्द्र, असुरकुमारराज चमर के पदातिसेना के अधिपति द्रम के सात कक्षाएँ कहो गई हैं / जैसे—पहली कक्षा, यावत् सातवीं कक्षा / (123) १२४-चमरस्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो दुमस्स पायत्ताणिधाधिपतिस्स पढमाए कच्छाए चउसद्धि देवसहस्सा पण्णता / जावतिया पढमा कच्छा तम्विगुणा दोच्चा कच्छा / जावतिया दोच्चा कच्छा तम्विगुणा तच्चा कच्छा / एवं जाव जावतिया छट्ठा कच्छा तश्विगुणा सत्तमा कच्छा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org