________________ सप्तम स्थान ] [607 ११६-भूताणंदस्स णं णागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो सत्त अणिया, सत्त प्रणियाहिवई पण्णत्ता, तं जहा–पायत्ताणिए जाव गंधव्वाणिए / दक्खे पायत्ताणियाहिवती जाव णंदुत्तरे रहाणियाहिवई, रती भट्टाणियाहिवई, माणसे गंधवाणियाहिवई। नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज भूतानन्द की सात सेनाएँ और सात सेनापति कहे गये हैं। जैसेसेनाएं-१. पदातिसेना 2. अश्वसेना 3. हस्तिसेना. 4. महिषसेना, 5. रथसेना, 6. नर्तकसेना 7. गन्धर्वसेना / सेनापति-१. दक्ष-पदातिसेना का अधिपति / 2. अश्वराज सुग्रीव-अश्वसेना का अधिपति / 3. हस्तिराज सुविक्रम-हस्तिसेना का अधिपति / 4. श्वेतकण्ठ-महिषसेना का अधिपति / 5. नन्दोत्तर-रथसेना का अधिपति / 6. रति-नर्तकसेना का अधिपति / 7. मानस-गन्धर्वसेना का अधिपति (116) / ११७-(जधा धरणस्स तथा सम्वेसि दाहिणिल्लाणं जाव घोसस्स / जिस प्रकार धरण की सेना और सेनापति कहे गये हैं, उसी प्रकार दक्षिण दिशा के भवनवासी देवों के इन्द्र वेणुदेव, हरिकान्त, अग्निशिख, पूर्ण, जलकान्त. अमितगति, वेलम्ब और घोष की भी सातसात सेनाएँ और सात-सात सेनापति जानना चाहिए (117) / ११८-जधा भूताणंदस्स तधा सव्वेसि उत्तरिल्लाणं जाव महाघोसस्स)। जिस प्रकार भूतानन्द के सेना और सेनापति कहे गये हैं, उसी प्रकार उत्तर दिशा के भवनवासी देवों के इन्द्र वेणुदालि, हरिस्सह, अग्निमानव, विशिष्ट जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभंजन और महाघोष की भी सात-सात सेनाएं और सात-सात सेनापति जानना चाहिए (118) / ११६–सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो सत्त अणिया, सत्त अणियाहिवती पण्णता, तं जहा---पायत्ताणिए जाव रहाणिए, पट्टाणिए, गंधवाणिए। हरिणेगमेसी पायत्ताणियाधिपती जाव माढरे रधाणियाधिपती, सेते णट्टाणियाहिवती, तुबुरू गंधवाणियाधिपती। देवेन्द्र देवराज शक्र की सात सेनाएँ और सात सेनापति कहे गये हैं / जैसे-- सेनाएँ-१. पदातिसेना, 2. अश्वसेना, 3. हस्तिसेना 4. महिषसेना 5. रथसेना 6. नर्तकसेना 7. गन्धर्वसेना। सेनापति-१. हरिनैगमेषी-पदातिसेना का अधिपति / 2. अश्वराज वायु-अश्वसेना का अधिपति / 3. हस्तिराज ऐरावण-हस्तिसेना का अधिपति / 4. दार्माद्ध-महिषसेना का अधिपति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org