________________ सप्तम स्थान ] [605 2. एकतो वक्रा श्रेणी-यद्यपि अाकाश की प्रदेश-श्रेणियां ऋजु (सीधी) ही होती हैं तथापि जीव या पुद्गल के मोड़दार गमन के कारण उसे वक्र कहा जाता है / जब जीव और पुद्गल ऋजु गति से गमन करते हुए दूसरी श्रेणी में पहुंचते हैं, तब उन्हें एक मोड़ लेना पड़ता है, इसलिए उसे एकतोवक्रा श्रेणो कहा जाता है। जैसे कोई जीव या पुद्गल ऊर्ध्वदिशा से अधोदिशा को पश्चिम श्रेणी पर जाना चाहता है, तो पहले समय में वह ऊपर से नीचे की ओर समश्रेणी से गमन करेगा / पुनः दूसरे समय में वहां से पश्चिम दिशा वाली श्रेणी पर गमन कर अभीष्ट स्थान पर पहुँचेगा / इस गति में दो समय और एक मोड़ लगने से इसका आकार L इस प्रकार का होगा। 3. द्वितो वक्रा श्रेणी--जिस गति में जीव या पुद्गल को दोनों ओर मोड़ लेना पड़े उसे द्वितोवका श्रेणी कहते हैं / जैसे कोई जीव या पुद्गल आकाश-प्रदेशों की ऊपरी सतह के ईशान कोण से चलकर नीचे जाकर नैऋत कोण में जाकर उत्पन्न होता है, तो उसे पहले समय में ईशान कोण से चलकर पूर्वदिशा-वाली श्रेणी पर जाना होगा / पुनः वहां से सीधी श्रेणी द्वारा नीचे की ओर जाना होगा। पुनः समरेखा पर पहुँच कर नैऋत कोण की ओर जाना होगा। इस प्रकार इस गति में दो मोड़ और तीन समय लगेंगे / इसका आकार ऐसा होगा। 4. एकतः खहा श्रेणी-जब कोई स्थावर जीव वसनाड़ी के वाम पार्श्व से उसमें प्रवेश कर उसके वाम या दक्षिण किसी पार्श्व में दो या तीन मोड़ लेकर नियत स्थान में उत्पन्न होता है, तब उसके त्रसनाड़ी के बाहर का आकाश एक ओर से स्पृष्ट होता है, इसलिए उसे 'एकतःखहा' श्रेणी कहा जाता है / इस का आकार 8 ऐसा होता है / 5. द्वितःखहा श्रेणी--जब कोई जीव मध्यलोक के पश्चिम लोकान्तवर्ती प्रदेश से चलकर मध्यलोक के पूर्वदिशावर्ती लोकान्तप्रदेश पर जाकर उत्पन्न होता है, तब उसके दोनों ही स्थलों पर लोकान्त का स्पर्श होने से द्वितःखहा श्रेणी कहा जाता है / इसका आकार -0- ऐसा होगा। 6. चक्रवाला श्रेणी-चक्र के समान गोलाकार गति को चक्रवाला श्रेणी कहते हैं। जैसे-0 7. अर्धचक्रवाला श्रेणी-आधे चक्र के समान आकार वाली श्रेणी को अर्धचक्रवाला कहते हैं। जैसे-C ___ इन दोनों श्रोणियों से केवल पुद्गल का ही गमन होता है, जीव का नहीं। अनीक-अनीकाधिपति-सूत्र ११३-चमरस्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो सत्त अणिया, सत्त अणियाधिपती पण्णत्ता, तं जहा-पायत्ताणिए, पीढाणिए, कुजराणिए, महिसाहिए, रहाणिए, पट्टाणिए, गंधवाणिए / (दुमे पायत्ताणियाधिधती, सोदामे प्रासराया पीढाणियाधिवती, कुथ हस्थिराया कुजराणियाधिवती, लोहितक्खे महिसाणियाधिवतो), किण्णरे रथाणियाधिवती, रिट्ठ णट्टाणियाधिवती, गीतरती गंधवाणियाधिवती। असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर की सात सेनाएँ और सात सेनाधिपति कहे गये हैं। जैसेसेनाएँ-१. पदातिसेना, 2. अश्वसेना, 3. हस्तिसेना, 4 महिषसेना, 5. रथसेना, 6. नर्तकसेना, 7. गन्धर्व-(गायक-) सेना / सेनापति--१. द्रम-पदातिसेना का अधिपति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org