________________ 604] [ स्थानाङ्गसूत्र ___ सौधर्म और ईशान कल्प के देवों के भवधारणीय शरीरों की उत्कृष्ट ऊंचाई सात रनि कही गई है (106) / नन्दीश्वरवर द्वीप-सूत्र ११०–णंदिस्सरवरस्स णं दीवस्स अंतो सत्त दीवा पण्णत्ता, तं जहा-जंबुद्दीवे, धायइसंडे, पोक्खरवरे, वरुणवरे, खीरवरे, धयवरे, खोयवरे। नन्दीश्वरवर द्वीप के अन्तराल में सात द्वीप कहे गये हैं / जैसे१. जम्बूद्वीप, 2. धातकीषण्ड, 3. पुष्करवर, 4. वरुणवर, 5. क्षीरवर, 6. घृतवर और 7. क्षोदवर द्वीप (110) / १११–णंदीसरवरस्स णं दीवस्स अंतो सत्त समुद्दा पण्णता, तं जहा-लवणे, कालोदे, पुक्खरोदे, वरुणोदे, खीरोदे, घरोदे, खोप्रोदे / नन्दीश्वरवर द्वीप के अन्तराल में सात समुद्र कहे गये हैं। जैसे१. लवण समुद्र, 2. कालोद, 3. पुष्करोद, 4. वरुणोद, 5. क्षीरोद, 6. घृतोद और 7. क्षोदोदसमुद्र (111) / श्रेणि-सूत्र ११२--सत्त सेढीग्रो पण्णतामो, तं जहा--उज्जुप्रायता, एगतोवंका, दुहतोवंका, एगतोखहा, दुहतोखहा, चक्कवाला, अद्धचक्कवाला। श्रेणियां (आकाश की प्रदेश-पंक्तियां) सात कही गई हैं / जैसे१. ऋजु-पायता-सीधी और लम्बी श्रेणी / 2. एकतो बका-एक दिशा में वक्र श्रेणी। 3. द्वितो वक्रा-दो दिशाओं में वक्र श्रेणी / 4. एकतः खहा-एक दिशा में अंकुश के समान मुड़ी श्रेणी। जिसके एक ओर त्रसनाड़ी का आकाश है। 5. द्वितः खहा-दोनों दिशाओं में अंकुश के समान मुड़ी हुई श्रेणी / जिसके दोनों ओर सनाड़ी के बाहर का आकाश है / 6. चक्रवाला-चाक के समान वलयाकार श्रेणी। 7. अर्धचक्रवाला-आधे चाक के समान अर्धवलयाकार श्रेणी (112) / विवेचन-आकाश के प्रदेशों की पंक्ति को श्रेणी कहते हैं। जीव और पुदगल अपने स्वाभाविक रूप से श्रेणी के अनुसार गमन करते हैं। किन्तु पर से प्रेरित होकर वे विश्रेणी-गमन भी करते हैं / प्रस्तुत सूत्र में सात प्रकार की श्रेणियों का निर्देश किया गया है। उनका खुलासा इस प्रकार है 1. ऋतु-आयता श्रेणी---जब जीव और पुद्गल ऊर्ध्वलोक से अधोलोक में, या अधोलोक से ऊर्ध्वलोक में सीधी श्रेणी से गमन करते हैं, कोई मोड़ नहीं लेते हैं / तब उसे ऋजु-आयता श्रेणी कहते हैं / इसका आकार (1) ऐसी सीधी रेखा के समान है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org