SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 670
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 602 ] [ स्थानाङ्गसूत्र प्रश्न-हे भगवन् ! अलसी, कुसुम्भ, कोद्रव, कंगु, राल, वरट (गोल चना), कोदूषक (कोद्रव-विशेष), सन, सरसों, मूलक बीज, ये धान्य जो कोष्ठागार-गुप्त, पल्यगुप्त, मंचगुप्त, मालागुप्त, अवलिप्त, लिप्त, लांछित, मुद्रित, पिहित हैं, उनकी योनि (उत्पादक शक्ति) कितने काल तक रहती उत्तर-हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात वर्ष तक उनकी योनि रहती है। उसके पश्चात् योनि म्लान हो जाती है, प्रविध्वस्त हो जाती है, विध्वस्त हो जाती है, बीज अबीज हो जाता है और योनि का व्युच्छेद हो जाता है (60) / स्थिति-सूत्र ६१-बायरप्राउकाइयाणं उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता / बादर अप्कायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति सात हजार वर्ष की कही गई है (61) / ६२-तच्चाए णं वालुयप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं घेरइयाणं सत्त सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता। तीसरी वालुकाप्रभा पृथ्वी के नारक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम की कही गई है (62) / ६३-चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए जहण्णेणं गैरइयाणं सत्त सागरोवमाई ठिती पण्णता। चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के नारक जीवों की जघन्य स्थिति सात सागरोपम कही गई है (63) / अग्रमहिषी-सूत्र १४–सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो सत्त प्रगमहिसीनो पण्णत्तायो / देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज वरुण की सात अग्रमहिषियां कही गई हैं (64) / ६५-ईसाणस्स णं देविदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो सत्त अग्गमहिसीनो पण्णत्तायो। देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल महाराज सोम की सात अग्नमहिषियां कही गई हैं (95) / ६६-ईसाणस्स णं देविदस्स देवरणो जमस्स महारण्णो सत्त अग्गमहिसोमो पण्णत्तानो। देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल महाराज यम की सात अग्रमहिषियां कही गई हैं (16) / देव-सूत्र ९७-ईसाणस्स णं देविदस्स देवरणो अभितरपरिसाए देवाणं सत्त पलिग्रोवमाई ठिती पण्णत्ता। देवेन्द्र देवराज ईशान के प्राभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति सात पल्योपम कही गई है (17) / १८-सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो अग्गमहिसीणं देवीणं सत्त पलिश्रोवमाइं ठिती पण्णत्ता। देवेन्द्र देवराज शक्र की अग्रमहिषी देवियों की स्थिति सात पल्योपम कही गई है (68) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy