________________ सप्तम स्थान ] [601 1. पृथ्वीकायिक-अनारम्भ, 2. अप्कायिक-अनारम्भ, 3. तेजस्कायिक-अनारम्भ, 4. वायुकायिक-अनारम्भ, 5. वनस्पतिकायिक-अनारम्भ, 6. सकायिक-अनारम्भ, 7. अजीवकायिक-अनारम्भ (85) / ८६-सत्तविहे सारंभे पण्णत्ते, त जहा-पुढविकाइयसारमे। संरम्भ सात प्रकार का कहा गया है / जैसे१. पृथ्वीकायिक-संरम्भ, २.अप्कायिक-संरम्भ, 3. तेजस्कायिक-संरम्भ, 4. वायुकायिकसंरम्भ, 5. वनस्पतिकायिक-संरम्भ, 6. त्रसकायिक-संरम्भ, 7. अजीवकायिक-संरम्भ ८७-सत्तविहे असारंभे पण्णते, तजहा-पुढविकाइयप्रसारंभे / असंरम्भ सात प्रकार का कहा गया है / जैसे१. पृथ्वीकायिक-असंरम्भ, 2. अप्कायिक-असंरम्भ, 3. तेजस्कायिक-असंरम्भ, 4. वायुकायिक-असंरम्भ, 5. वनस्पतिकायिक-असंरम्भ, 6. त्रसकायिक-असंरम्भ 7. अजीव-कायिकअसंरम्भ (87) / 88 सत्तविहे समारंभे पण्णते, त जहा-पुढविकाइयसमारंभे / समारम्भ सात प्रकार का कहा गया है / जैसे१. पृथ्वीकायिक-समारम्भ, 2. अप्कायिक-समारम्भ, 3. तेजस्कायिक-समारम्भ, 4. वायुकायिक-समारम्भ, 5. वनस्पतिकायिक-समारम्भ, 6. त्रसकायिक-समारम्भ, 7. अजीवकायिक-समारम्भ (88) / ८६–सत्तविहे असमारंभे पण्णत्ते, त जहा-पुढविकाइयप्रसमारंभे)। असमारम्भ सात प्रकार का कहा गया है / जैसे१. पृथ्वीकायिक-समारम्भ, 2. अप्कायिक-असमारम्भ, 3. तेजस्कायिक-असमारम्भ, 4. वायुकायिक-असमारम्भ, 5. वनस्पतिकायिक-समारम्भ, 6. त्रसकायिक-असमारम्भ, 7. अजीवकायिक-असमारम्भ (86) / योनिस्थिति-सूत्र 8.---अध भंते ! अदसि-कुसुम्भ-कोइव-कंगु-रालग-वरट्ट-कोदूसग-सण-सरिसव-मूलगबीयाणं-एतेसि णं धण्णाणं कोढाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं (मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं पोलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुदियाणं) पिहियाणं केवइयं कालं जीणी संचिट्ठति ? गोयमा! जहणणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं सत्त संवच्छराई। तेण परं जोणी पमिलायति (तेण परं जोणी पविद्धसति, तेण परं जोणी विद्धसति, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परं) जोणीवोच्छेदे पण्णत्ते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org