________________ 600 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 3. प्राचार्य और उपाध्याय स्वतन्त्र हैं, यदि इच्छा हो तो दूसरे साधु की वैयावृत्त्य करें, यदि इच्छा न हो तो न करें। 4. आचार्य और उपाध्याय उपाश्रय के भीतर एक रात या दो रात अकेले रहते हुए आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं। 5. प्राचार्य और उपाध्याय उपाश्रय के बाहर एक रात या दो रात अकेले रहते हुए आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं। 6. उपकरण की विशेषता-प्राचार्य और उपाध्याय अन्य साधुओं की अपेक्षा उज्ज्वल वस्त्र पात्रादि रख सकते हैं। 7. भक्त-पान-विशेषता-स्वास्थ्य और संयम की रक्षा के अनुकूल आगमानुकूल विशिष्ट खान-पान कर सकते है (81) / संयम-असंयम-सूत्र ___८२-सत्तविधे संजमे पण्णत्ते, तं जहा - पुढविकाइयसंजमे, (प्राउकाइयसंजमे, तेउकाइयसंजमे, वाउकाइयसंजमे, वणस्सइकाइयसंजमे), तसकाइयसंजमें, अजीवकाइयसंजमे / संयम सात प्रकार का कहा गया है / जैसे१. पृथिवीकायिक-संयम, 2. अप्कायिक-संयम, 3. तेजस्कायिक-संयम, 4. वायुकायिक-संयम, 5. बनस्पतिकायिक-संयम, 6. सकायिक-संयम, 7. अजीवकायिक-संयम-अजीव वस्तुओं के ग्रहण और उपयोग का त्यागना (82) / ८३–सत्तविधे असंजमे पण्णते, त जहा–पुढविकाइयनसंजमे, (प्राउकाइयप्रसंजमे, तेउकाइयप्रसंजमे, वाउकाइयप्रसंजमे, वणस्सइकाइयप्रसंजमे), तसकाइयप्रसंजमे, अजीवकाइयप्रसंजमे। असंयम सात प्रकार का कहा गया है। जैसे१. पृथिवीकायिक-असंयम, 2. अप्कायिक-असंयम, 3. तेजस्कायिक-असंयम, 4. वायुकायिकअसंयम 5. वनस्पतिकायिक-असंयम, 6. सकायिक-असंयम, 7. अजीवकायिक-प्रसंयम अजीव वस्तुओं के ग्रहण और परिभोग का त्याग न करना (83) / आरंभ-सूत्र ८४--सत्तविहे प्रारंभे पण्णत्ते, तं जहा-पुढविकाइयप्रारंभे, प्राउकाइयप्रारंभे, तेउकाइयप्रारंभे, वाउकाइयभारंभे, वणस्सइकाइयप्रारंभे, तसकाइयप्रारंभे), अजीवकाइयभारंभे / प्रारम्भ सात प्रकार का कहा गया है / जैसे१. पृथ्वीकायिक-प्रारम्भ, 2. अप्कायिक-प्रारम्भ, 3. तेजस्कायिक-प्रारम्भ 4. वायुकायिकआरम्भ, 5. वनस्पतिकायिक-प्रारम्भ, 6. त्रसकायिक-ग्रारम्भ, 7. अजीवकायिकप्रारम्भ (84) / ८५-(सत्तविहे अणारंभे पण्णते, त जहा-पुढ विकाइयप्रणारंभे / अनारम्भ सात प्रकार का कहा गया है / जैसे-~पृथ्वी कायिक अनारंभ आदि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org