SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 667
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तम स्थान ] [ 566 महावीर-सूत्र ७६-समणे भगवं महावीरे वइरोसभणारायसंघयणे समचउरंस-संठाण-संठिते सत्त रयणीयो उड्ड उच्चत्तेणं हुत्था। वज्र-ऋषभ-नाराचसंहनन और समचतुरस्र-संस्थान से संस्थित श्रमण भगवान् महावीर के शरीर की ऊंचाई सात रत्नि-प्रमाण थी (76) / विकथा-सूत्र ८०-सत्त विकहानो पण्णत्तायो, तं जहा—इत्थिकहा, भत्तकहा, देसकहा, रायकहा, मिउकालुणिया, दंसणभेयणी, चरित्तभेयणी। विकथाएं सात कही गई हैं / जैसे१. स्त्रीकथा विभिन्न देश की स्त्रियों की कथा-वार्तालाप / 2. भक्तकथा-विभिन्न देशों के भोजन-पान संबंधी वार्तालाप / 3. देशकथा-विभिन्न देशों के रहन-सहन संबंधी वार्तालाप / 4. राज्यकथा-विभिन्न राज्यों के विधि-विधान आदि की कथा-वार्तालाप / 5. मृदु-कारुणिकी-इष्ट-वियोग-प्रदर्शक करुणरस-प्रधान कथा / 6. दर्शन-भेदिनो–सम्यग्दर्शन का विनाश करने वाली कथा-वार्तालाप / 7. चारित्र-भेदिनी-सम्यक्चारित्र का विनाश करने वाली बातें करना (80) / आचार्य-उपाध्याय-अतिशेष-सत्र ८१-पायरिय-उवज्झायस्स णं गणसि सत्त अइसेसा पण्णत्ता, तं जहा१. पायरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स पाए णिगिझिय-णिगिज्झिय पफोडेमाणे वा पमज्जमाणे वा णातिक्कमति / 2. (प्रायरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चारपासवणं विगिचमाणे वा विसोधेमाणे बा णातिक्कमति / 3. पायरिय-उवज्झाए पभू इच्छा वेयावडियं करेज्जा, इच्छा णो करेज्जा। 4. प्रायरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स एगरातं वा दुरातं वा एगगो वसमाणे पातिक्कमति / 5. पायरिय-उवज्झाए) बाहि उवस्सयस्स एगरातं वा दुरातं वा [एगो ?] वसमाणे __णातिक्कमति / 6. उवकरणातिसेसे। 7. भत्तपाणातिसेसे। आचार्य और उपाध्याय के गण में सात अतिशय कहे गये हैं। जैसे१. आचार्य और उपाध्याय उपाश्रय के भीतर दोनों पैरों की धूलि को झाड़ते हुए, प्रमाजित करते हुए आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं / 2. प्राचार्य और उपाध्याय उपाश्रय के भीतर उच्चार-प्रस्रवण का व्युत्सर्ग और विशोधन करते हुए आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy