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________________ सप्तम स्थान ] [ 567 विवेचन–सप्तम स्थान के अनुरोध से यहां अकाल मरण के सात कारण बताये गये हैं / इनके अतिरिक्त, रक्त-क्षय से, संक्लेश को वृद्धि से, हिम-पात से, वज्र-पात से, अग्नि से, उल्कापात से, जल-प्रवाह से, गिरि और वृक्षादि से नीचे गिर पड़ने से भी अकाल में आयु का भेदन या विनाश हो जाता है। जोव-सूत्र ७३–सत्तविधा सव्वजोवा पण्णत्ता, तं जहा---पुढविकाइया, प्राउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सतिकाइया, तसकाइया, प्रकाइया। अहवा--सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा–कण्हलेसा, (णीललेसा, काउलेसा, तेउलेसा, पम्हलेसा), सुक्कलेसा, प्रलेसा। सर्व जीव सात प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. पृथिवीकायिक, 2. अप्कायिक, 3. तेजस्कायिक, 4. वायुकायिक 5. वनस्पतिकायिक, 6. त्रसकायिक 7. अकायिक (73) / अथवा-सर्व जीव सात प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. कृष्णलेश्या वाले, 2. नील लेश्या वाले, 3. कापोत लेश्या वाले, 4. तेजो लेश्या वाले, ' 5. पद्म लेश्या वाले, 6. शुक्ल लेश्या वाले, 7. अलेश्य / ब्रह्मदत्त-सूत्र ७४–भदत्ते णं राया चाउरंतचक्कवट्टो * सत्त धणई उड्ड उच्चत्तणं, सत्त य वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा अधेसत्तमाए पुढवीए अप्पतिढाणे णरए रइयत्ताए उववण्णे / चातुरन्त चक्रवर्ती राजा ब्रह्मदत्त सात धनुष ऊंचे थे / वे सात सौ वर्ष की उत्कृष्ट प्रायु का पालन कर काल-मास में काल कर नीचे सातवीं पृथिवी के अप्रतिष्ठान नरक में नारक रूप से उत्पन्न हुए (74) / मल्ली-प्रवज्या-सूत्र ७५---मल्ली णं परहा अप्पसत्तमे मडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पवइए, तं जहा-- मल्ली विवेहरायवरकण्णगा, पडिबुटी इक्खागराया, चंदच्छाये अंगराया, रुप्पी कुणालाधिपती, संखे कासीराया, प्रदोणसत्तू कुरुराया, जितसत्तू पंचालराया। मल्ली अर्हन अपने सहित सात राजाओं के साथ मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रवजित हुए / जैसे 1. विदेहराज की वरकन्या मल्ली। 2. साकेत-निवासी इक्ष्वाकूराज प्रतिबद्धि / 3. अंग जनपद का राजा चम्पानिवासी चन्द्रच्छाय। 4. कुणाल जनपद का राजा श्रावस्ती-निवासी रुक्मी। 5. काशी जनपद का राजा वाराणसी-निवासी शंख / 6. कुरु देश का राजा हस्तिनापुर-निवासी प्रदीनशत्रु / 7. पञ्चाल जनपद का राजा कम्पिल्लपुर-निवासी जितशत्रु (75) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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