________________ 566 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 6. मन में दु:ख या उद्वेग होने से / 7. वचन-व्यवहार संबंधी दुःख से (66) / सुषमा-लक्षण-सूत्र ७०-~-सहि ठाणेहि ओगाढं सुसमं जाणेज्जा, तं जहा-प्रकाले ण परिसइ, काले वरिसइ, प्रसाधू ण पुज्जति, साधू पुज्जंति, गुरूहि जणो सम्म पडिवण्णो, मणोसुहता, वइसुहता। सात लक्षणों से सुषमा काल का आना या प्रकर्षता को प्राप्त हो जाना जाता है / जैसे१. अकाल में वर्षा नहीं होने से / 2. समय पर वर्षा होने से / 3. असाधुओं की पूजा नहीं होने से / 4. साधुओं की पूजा होने से। 5. गुरुजनों के प्रति लोगों का सद्व्यवहार होने से / 6. मन में सुख का संचार होने से / 7. वचन-व्यवहार में सद्-भाव प्रकट होने से (70) / जीव-सूत्र 71- सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा–णेरइया, तिरिक्खजोणिया, तिरिक्खजोणिणीप्रो, मणस्सा, मणुस्सीप्रो, देवा, देवीप्रो। संसार-समापन्नक जीव सात प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. नैरयिक, 2. तिर्यग्योनिक, 3. तिर्यचनी, 4. मनुष्य, 5. मनुष्यनी, 6. देव, 7. देवी (71) / आयुर्भेद-सूत्र ७२--सत्तविधे आउभेदे पण्णत्ते, तं जहा--- संग्रहणी-गाथा अज्झवसाण-णिमित्ते, प्राहारे वेयणा पराघाते / फासे प्राणापाणू सत्तविघं भिज्जए पाउं // 1 // आयुर्भेद (अकाल मरण) के सात कारण कहे गये हैं / जैसे१. राग, द्वेष, भय आदि भावों की तीव्रता से / 2. शस्त्राघात आदि के निमित्त से। 3. आहार को हीनाधिकता या निरोध से / 4. ज्वर, आतंक, रोग आदि की तीव्र वेदना से / 5. पर के आघात से, गड्ढे आदि में गिर जाने से / 6. सांप आदि के स्पर्श से-काटने से। 7. आन-पान-श्वासोच्छ्वास के निरोध से / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org