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________________ सप्तम स्थान ] [585 ४३-एतेसि गं सत्तण्हं सराणं सत्त सरलक्खणा पण्णत्ता, तजहा सज्जेण लभति वित्ति, कतं च ण विणस्सति / गावो मित्ता य पुत्ता य, जारीणं चेव वल्लभो // 1 // रिसभेण उ एसज्ज, सेणावच्चं धणाणि य। वस्थगंधमलंकार, इस्थिमो सयणाणि य॥२॥ . गंधारे गीतजुत्तिण्णा, वज्जवित्तो कलाहिया। भवंति कइणो पण्णा, जे अण्णे सत्थपारगा // 3 // मझिमसरसंपण्णा, भवंति सुहजीविणो। खायती पियती देती, मज्झिमसरमस्सितों // 4 // पंचमसरसंपण्णा, भवंति पुढवीपती। सूरा संगहकत्तारो अणेगगणणायगा / / 5 / / धेवतसरसंपण्णा, भवंति कलहप्पिया। 'साउणिया वग्गुरिया, सोयरिया मच्छबंधा य॥६॥ 'चंडाला मुट्टिया मेया, जे अण्णे पावकम्मिणो। गोघातगा य जे चोरा, सायं सरमस्सिता' // 7 // इन सातों स्वरों के सात स्वर-लक्षण कहे गये हैं। जैसे१. षड्ज स्वर वाला मनुष्य आजीविका प्राप्त करता है, उसका प्रयत्न व्यर्थ नहीं जाता। उसके गाएं, मित्र और पुत्र होते हैं। वह स्त्रियों को प्रिय होता है। 2. ऋषभ स्वर वाला मनुष्य ऐश्वर्य, सेनापतित्व, धन, वस्त्र, गन्ध, आभूषण, स्त्री, शयन और आसन को प्राप्त करता है। 3. गान्धार स्वर वाला मनुष्य गाने में कुशल, वादित्र वृत्तिवाला, कलानिपुण, कवि, प्राज्ञ __ और अनेक शास्त्रों का पारगामी होता। 4. मध्यम स्वर से सम्पन्न पुरुष सुख से खाता, पीता, जीता और दान देता है। 5. पंचमस्वर वाला पुरुष भूमिपाल, शूर-वीर, संग्राहक और अनेक गणों का नायक होता है / 6. धैवत स्वर वाला पुरुष कलह-प्रिय, पक्षियों को मारने वाला (चिड़ीमार) हिरण, सूकर और मच्छी मारने वाला होता है। 7. निषाद स्वर वाला पुरुष चाण्डाल, वधिक, मुक्केबाज, गो-घातक, चोर और अनेक प्रकार के पाप करने वाला होता है (43) / ४४-एतेसि णं सत्तण्हं सराणं तओ गामा पण्णता, त जहा-सज्जगामे, मझिमगामे गंधारगामे। इन सातों स्वरों के तीन ग्राम कहे गये हैं / जैसे---- 1. षड्जनाम, 2. मध्यमग्राम, 3. गान्धारग्राम (44) / ४५-सज्जगामस्स गं सत्त मुच्छणाम्रो पण्णत्ताओ, तं जहा मंगी कोरव्वीया, हरी य रयणी य सारकंता य / छट्ठी य सारसी गाम, सुद्धसज्जा य सत्तमा // 1 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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