________________ 586 ] [ स्थानाङ्गसूत्र षड्जग्राम की आरोह-अवरोह, या उतार-चढ़ाव रूप सात मूर्च्छनाएं कही गई हैं / जैसे१. मंगी, 2. कौरवीया, 3. हरित्, 4. रजनी, 5. सारकान्ता, 6. सारसी, 7. शुद्ध षड्जा (45) / ४६-मज्झिमगामस्स णं सत्त मुच्छणाम्रो पण्णत्तानो तं जहा उत्तरमंदा रयणी, उत्तरा उत्तरायता। अस्सोकंता य सोवीरा, अभिरू हवति सत्तमा // 1 // मध्यम ग्राम की सात मूर्च्छनाएं कही गई हैं। जैसे१. उत्तरमन्द्रा, 2. रजनी, 3. उत्तरा, 4. उत्तरायता 5. अश्व क्रान्ता, 6. सौवीरा, 7. अभिरुद्-गता (46) / ४७-गंधारगामस्स णं सत्त मुच्छणामो पण्णत्तायो, तं जहा गंदी य खुद्दिमा पूरिमा, य चउत्थी य सुद्धगंधारा। उत्तरगंधारावि य, पंचमिया हवति मुच्छा उ॥१॥ सुठुत्तरमायामा, सा छट्ठी णियमसो उ णायव्वा / अह उत्तरायता, कोडिमा य सा सत्तमी मुच्छा // 2 // गान्धार ग्राम की सात मूर्च्छनाएं कही गई हैं / जैसे१. नन्दी. 2. क्षुद्रिका, 3. पूरका, 4. शुद्धगान्धारा, 5. उत्तरगान्धारा, 6. सुष्ठुतर आयामा 7. उत्तरायता कोटिमा (47) / 48 सत्त सरा कतो संभवंति ? गीतस्स का भवति जोणी ? कतिसमया उस्साया ? कति वा गीतस्स प्रागारा? // 1 // सत्त सरा णाभोतो, भवंति गीतं च रुग्णजोणीयं / पदसमया ऊसासा, तिणि य गीयस्स प्रागारा // 2 // प्राइमिउ प्रारभंता, समुव्वहंता य मझगारंमि / अवसाणे य झवेंता, तिणि य गेयस्स प्रागारा // 3 // छद्दोसे अट्टगुणे, तिणि य वित्ताइं दो य भणितीयो। जो णाहिति सो गाहिइ, सुसिक्खिनो रंगमज्झम्मि // 4 // भीतं दुतं रहस्सं, गायंतो मा य गाहि उत्तालं / काकस्सरमणुणासं, च होंति गेयस्स छद्दोसा // // पुण्णं रत्तं च अलंकियं च वत्तं तहा अविघुट्ठ। मधुरं समं सुललियं, अट्ठ गुणा होति गेयस्स // 6 // उर-कंठ-सिर-विसुद्ध, च गिज्जते मउय-रिभिन्न-पदबद्ध। समतालपदुक्खेवं, सत्तसरसीहरं गेयं // 7 // णिहोसं सारवंतं च, हेउजुत्तमलंकियं / उवणीतं सोवयारं च, मितं मधुरमेव य // 8 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org