________________ 584] [ स्थानाङ्गसूत्र इन सातों स्वरों के सात स्वर-स्थान कहे गये हैं / जैसे१. षड्ज का स्थान-जिह्वा का अग्रभाग / 2. ऋषभ का स्थान-उरस्थल / 3. गान्धार का स्थान-कण्ठ / 4. मध्यम का स्थान-जिह्वा का मध्य भाग / 5. पंचम का स्थान-नासा / 6. धैवत का स्थान-दन्त-श्रोष्ठ-संयोग / 7. निषाद का स्थान--शिर (41) / ४१--सत्त सरा जीवणिस्सिता पण्णत्ता, त जहा सज्ज रवति मयूरो, कुक्कुडो रिसभं सरं / हंसो णदति गंधारं, मज्झिमं तु गवेलगा // 1 // अह कुसुमसंभवे काले, कोइला पंचमं सरं। छट्टच सारसा कोंचा, सायं सत्तमं गजो // 2 // जीव-निःसृत सात स्वर कहे गये हैं / जैसे-- 1. मयूर षड्ज स्वर में बोलता है। 2. कुक्कुट ऋषभ स्वर में बोलता है / 3. हंस गान्धार स्वर में बोलता है / 4. गवेलक (भेड़) मध्यम स्वर में बोलता है। 5. कोयल वसन्त ऋतु में पंचम स्वर में बोलता है। 6. क्रौञ्च और सारस धैवत स्वर में बोलते हैं / 7. हाथी निषाद स्वर में बोलता है (41) / ४२–सत्त सरा अजीवणिस्सिता पण्णत्ता, तं जहा सज्ज रवति मुइंगो, गोमही रिसभं सरं। संखो गदति गंधारं, मज्झिमं पुण झल्लरी // 1 // चउचलणपतिढाणा, गोहिया पंचमं सरं। प्राडंबरो धेवतियं, महाभेरी य सत्तमं // 2 // अजीव-निःसृत सात स्वर कहे गये हैं। जैसे१. मृदंग से षड्ज स्वर निकलता है। 2. गोमुखी से ऋषभ स्वर निकलता है / 3. शंख से गान्धार स्वर निकलता है। 4. झल्लरी से मध्यम स्वर निकलता है। 5. चार चरणों पर प्रतिष्ठित गोधिका से पंचम स्वर निकलता है। 6. ढोल से धैवत स्वर निकलता है / 7. महाभेरी से निषाद स्वर निकलता है (42) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org