________________ षष्ठ स्थान ] [ 547 3. मोसली-वस्त्र के ऊपरी, नीचले या तिरछे भाग का प्रतिलेखन करते हुए परस्पर घट्टन करना। 4. प्रस्फोटना--बस्त्र को धूलि को झटकारते हुए प्रतिलेखना करना / 5. विक्षिप्ता--प्रतिलेखित वस्त्रों को अप्रतिलेखित वस्त्रों के ऊपर रखना। 6. वेदिका-प्रतिलेखना करते समय विधिवत् न बैठकर यद्वा-तद्वा बैठकर प्रतिलेखना करना (45) / ४६-छविहा अप्पभायपडिलेहणा पण्णत्ता, स जहा.संग्रहणी-गाथा अणच्चावितं अवलितं अणाणबंधि अमोलि चेव / छप्पुरिमा णव खोडा, पाणीपाणविसोहणी // 1 // प्रमाद-रहित प्रतिलेखना छह प्रकार की कही गई है / जैसे---- 1. अनतिता-शरीर या वस्त्र को न नचाते हुए प्रतिलेखना करना। 2. अवलिता-शरीर या वस्त्र को झुकाये बिना प्रतिलेखना करना। 3. अनानुबन्धी-उतावल-रहित वस्त्र को झटकाये विना प्रतिलेखना करना। 4. अमोसली-वस्त्र के ऊपरी, नीचले आदि भागों को मसले विना प्रतिलेखना करना / 5. षट्पूर्वा-नवखोडा-प्रतिलेखन किये जाने वाले वस्त्र को पसारकर और आँखों से भलीभांति से देखकर उसके दोनों भागों को तोन-तोर वार खं वरना पर्वा प्रतिलेखना है, वस्त्र को तीनतीन वार पुज कर तीन वार शोधना नवखोड हैं / 6. पाणिप्राण-विशोधिनी- हाथ के ऊपर वस्त्र-गत जीव को लेकर प्रासुक स्थान पर प्रस्थापन करना (46) / लेश्या-सूत्र ४७-छ लेसाम्रो पण्णत्तानो, त जहा—कहलेसा, (गोललेसा, काउलेसा, तेउलेसा, पम्हलेसा), सुक्कलेसा / लेश्याएं छह कही गई हैं। जैसे--- 1. कृष्णलेश्या, 2. नीललेश्या, 3. कापोतलेल्या, 4. तेजोलेश्या, 5. पद्मलेश्या 6. शुक्ल लेश्या (47) / ४८---पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं छ लेसानो पण्णत्तानो, त जहा–कण्हलेसा, (णोललेसा, काउलेसा, तेउलेसा, पम्हलेसा), सुक्कलेसा / पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीवों के छह लेश्याएं कही गई हैं। जैसे१. कृष्णलेश्या, 2. नीललेश्या, 3. कापोतलेश्या, 4. तेजोलेश्या, 5. पद्मलेश्या, 6. शुक्ल लेश्या (48) / 1. उत्तराध्ययन सूत्र 26, पा. 25 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org