________________ 546 ] [ स्थानाङ्गसूत्र छह कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ अाहार का परित्याग करता हुआ भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है / जैसे--- 1. आतंक-ज्वर आदि आकस्मिक रोग हो जाने पर ! 2. उपसर्ग-देव, मनुष्य, तिर्यंच कृत उपद्रव होने पर / 3. तितिक्षण-ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए। 4. प्राणियों की दया करने के लिए। 5. तप की वृद्धि के लिए। (विशिष्ट कारण उपस्थित होने पर) शरीर का व्युत्सर्ग करने के लिए (42) / उन्माद-सूत्र ४३-छहि ठाणेहिं पाया उम्भायं पाउणेज्जा, तजहा-अरहताणं अवणं वदमाणे, अरहंतपत्तस्स धम्मस्स अवष्णं वढमाणे, पायरिय-उवझायाणं अवष्णं वदमाणे, चाउवण्णस्स संघस्स प्रवणं वदमाणे, जक्खावेसेण चेव, मोहणिज्जस्स चेव कम्मस्स उदएणं / छह कारणों से प्रात्मा उन्माद (मिथ्यात्व) को प्राप्त होता है / जैसे१. अर्हन्तों का अवर्णवाद करता हुआ / 2. अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म का अवर्णवाद करता हुआ। 3. प्राचार्य और उपाध्याय का अवर्णवाद करता हुआ / 4. चतुर्वर्ण (चतुविध) संघ का अवर्णवाद करता हा / 5. यक्ष के शरीर में प्रवेश से। 6. मोहनीय कर्म के उदय से (43) / प्रमाद-सूत्र ४४–छविहे पमाए पण्णत्ते, त जहा--मज्जपमाए, जिद्दपमाए, विसयपमाए, कसायपमाए, जूतपमाए, पडिलेहणापमाए / प्रमाद (सत्-उपयोग का अभाव) छह प्रकार का कहा गया है / जैसे-~१. मद्य-प्रमाद, 2. निद्रा-प्रमाद, 3. विषय-प्रमाद, 4. कषाय-प्रमाद, 5. ध त-प्रमाद, 6. प्रतिलेखना-प्रमाद (44) / प्रतिलेखना-सूत्र ४५–छविहा पमायपडिलेहणा पण्णत्ता, त जहा संग्रहणी-गाथा __ प्रारभडा संमद्दा, वज्जेयत्वा य मोसली ततिया। पप्फोडणा चउत्थी, विक्खिता वेइया छट्ठी' // 1 // प्रमाद-पूर्वक की गई प्रतिलेखना छह प्रकार की कही गई है। जैसे१. आरभटा---उतावल से वस्त्रादि को सम्यक प्रकार से देखे विना प्रतिलेखना करना। 2. संमर्दा-मर्दन करके प्रतिलेखना करना / 1. उत्तराध्ययन सूत्र 26, पा. 26 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org