________________ पंचम स्थान-तृतीय उद्देश / [ 516 जीव-सूत्र २०४-पंचविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णता, तं जहा-एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चरिदिया, पाँचदिया। संसार-समापन्नक (संसारी) जीव पाँच प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. एकेन्द्रिय, 2. द्वीन्द्रिय, 3. त्रीन्द्रिय, 4. चतुरिन्द्रिय और 5. पंचेन्द्रियजीव (204) / गति-आगति-सूत्र २०५–एगिदिया पंचगतिया पंचागतिया पण्णत्ता, तं जहा-एगिदिए एगिदिएसु उववज्जमाणे एगिदिएहितो वा, (बेइंदिरहितो वा. तेइंदिरहितो वा, चरिदिएहितो वा), पंचिदिएहितो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से एगिदिए एगिदियत्तं विप्पजहमाणे एगिदियत्ताए वा, (बेइंदियत्ताए वा, तेइंदियत्ताए बा, चरिदियत्ताए वा), पचिंदियत्ताए वा गच्छेज्जा। एकेन्द्रिय जीव पाँच गतिक और पाँच प्रागतिक कहे गये हैं / जैसे--- 1. एकेन्द्रिय जीव एकेन्द्रियों में उत्पन्न होता हुआ एकेन्द्रियों से, या द्वीन्द्रियों से, या त्रीन्द्रियों से, चतुरिन्द्रिया से, या पंचेन्द्रियों से प्राकर उत्पन्न होता है। 2. वही एकेन्द्रियजीव एकेन्द्रियपर्याय को छोड़ता हुआ एकेन्द्रियों में, या द्वीन्द्रियों में, या त्रीन्द्रियों में, या चतुरिन्द्रियों में, या पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होता है। २०६–बंदिया पंचगतिया पंचागतिया एवं चेव / २०७–एवं जाव पंचिदिया पंचगतिया पंचागतिया पण्णत्ता, त जहा-पंचिदिए जाव गच्छेज्जा। इसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीव भी पाँच गतिक और पाँच प्रागतिक जानना चाहिए। यावत् पंचेन्द्रिय तक के सभी जीव पाँच गतिक और पाँच प्रागतिक कहे गये हैं / अर्थात सभी त्रस जीव मर कर पाँचों ही प्रकार के जीवों में उत्पन्न हो सकते हैं (206-207) / जीव-सूत्र २०८-पंचविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-कोहकसाई, (माणकसाई, मायाकसाई), लोभकसाई, अकसाई। अहवा-पंचविधा सव्वजीवा पण्णता, तं जहा–णेरइया, (तिरिक्खजोणिया, मणुस्सा), देवा, सिद्धा। सर्व जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं। जैसे--- 1. क्रोधकषायी 2. मानकषायी, 3. मायाकषायी, 4. लोभकषायो, 5. अकषायी। अथवा-सर्वजीव पाँच प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. नारक 2. तिर्यंच, 3. मनुष्य, 4. देव, 5. सिद्ध / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org