________________ 518 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 3. माहन-वनीपक-ब्राह्मण-दान को प्रशंसा कर के भोजन मांगने वाला। 4. श्व-वनीपक---कुत्ते के दान की प्रशंसा कर के भोजन मांगने वाला। 5. श्रमण-वनीपक-श्रमणदान की प्रशंसा कर के भोजन मांगने वाला (200) / अचेल-सूत्र २०१-पंचहि ठाणेहि अचेलए पसत्थे भवति, त जहा–अप्पापडिलेहा, लाघविए पसत्थे, रूवे वेसासिए, तवे अणुग्णाते, विउले इंदियणिग्गहे / पाँच कारणों से अचेलक प्रशस्त (प्रशंसा को प्राप्त) होता है / जैसे-- 1. अचेलक की प्रतिलेखना अल्प होती है। 2. अचेलक का लाघव प्रशस्त होता है। 3. अचेलक का रूप विश्वास के योग्य होता है। 4. अचेलक का तप अनुज्ञात (जिन-अनुमत) होता है / 5. अचेलक का इन्द्रिय-निग्रह महान् होता है (201) / उत्कल-सूत्र २०२-पंच उक्कला पण्णता, त जहा-दंडुक्कले, रज्जुक्कले, तेणुक्कले, देसुक्कले, सव्वुक्कले। पाँच उत्कल (उत्कट शक्ति-सम्पन्न) पुरुष कहे गये हैं। जैसे१. दण्डोत्कल-प्रबल दण्ड (आज्ञा या सैन्यशक्ति) वाला पुरुष / 2. राज्योत्कल-प्रबल राज्यशक्ति वाला पुरुष / 3. स्तेनोत्कल-प्रबल चौरों की शक्तिवाला पुरुष / 4. देशोत्कल-प्रबल जनपद की शक्तिवाला पुरुष / 5. सर्वोत्कल-उक्त सभी प्रकार की प्रबल शक्तिवाला पुरुष (202) / समिति-सूत्र 203 --पंच समितीनो पण्णत्ताओ, तं जहा—इरियासमिती, भासासमिती, एसणासमिती, प्रायाणभंड-मत्त-णिक्खेवणासमिती, उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिठावणियसमितो। समितियाँ पाँच कही गई हैं / जैसे१. ईर्यासमिति-गमन में सावधानी यूग-प्रमाण भूमि को शोधते हुए गमन करना। 2. भाषासमिति-बोलने में सावधानी-हित, मित, प्रिय बचन बोलना। 3. एषणासमिति-गोचरी में सावधानी–निर्दोष भिक्षा लेना। 4. आदान-भाण्ड-अमत्र-निक्षेपणासमिति-भोजनादि के भाण्ड-पात्र आदि को सावधानी पूर्वक देख-शोधकर लेना और रखना। 5. उच्चार (मल) प्रस्रवण-(मूत्र) श्लेष्म (कफ) जल्ल (शरीर का मैल) सिंघाड़ (नासिका __का मल), इनका निर्जन्तु स्थान में विमोचन करना (203) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org