________________ पंचम स्थान-प्रथम उद्देश ] [476 1. मूल नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये / 2. मूल नक्षत्र में जन्म लिया। 3. मूल नक्षत्र में अगार से अनगारिता में प्रवजित हए। 4. मूल नक्षत्र में अनुत्तर परिपूर्ण ज्ञान-दर्शन समुत्पन्न हुआ / 5. मूल नक्षत्र में परिनिर्वृत हुए-निर्वाण पद पाया (86) / ८६–एवं चेव एवमेंतेणं अभिलावेणं इमातो गाहातो अणुगंतव्वातो पउमप्पमस्स चित्ता, मूले पुण होइ पुष्पदंतस्स / पुवाई प्रासाढा, सीयलस्सुत्तर विमलस्स भद्दवता // 1 // रेवतिता अणंतजिणो, पूसो धम्मस्स संतिणो भरणी। कुथुस्स कत्तियाप्रो, प्ररस्स तह रेवतीतो य // 2 / / मुणिसुब्क्यस्स सवणो, प्रासिणि णमिणो य मिणो चित्ता। पासस्स विसाहायो, पंच य हत्थुत्तरे वीरो // 3 // [सीयले णं अरहा पंचपुत्वासाद हुत्था, तं जहा---पुवासाढहि चुते चइत्ता गम्भं वक्कते। शीतलनाथ तीर्थकर के पांच कल्याणक पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में हुए / जैसे-- 1. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में पाये / इत्यादि (86) / ८७–विमले णं अरहा पंचउत्तराभद्दवए हुत्था, तं जहा-उत्तराभवयाहिं चुते चइत्ता गभं वक्कते। ८८–अणते णं अरहा पंचरेवतिए हुत्था, तं जहा रेवतिहिं चुते चइत्ता गम्भं वक्कते। ८६-धम्मे णं अरहा पंचपूसे हुत्था, तं जहा-पूसेणं चुते चइत्ता गम्भं वक्ते / ६०-संती गं अरहा पंचभरणीए हुत्था, तं जहा-भरणीहिं चते चइत्ता गभं वक्ते / ६१-कुथ णं णरहा पंचकत्तिए हत्था, तं जहा-कत्तियाहि चुते चइत्ता गम्भं वक्कते। ६२-अरे णं अरहा पंचरेवतिए हुत्था, त जहा-रेवतिहिं चुते चइत्ता गभं वक्कते। ६३~मुणिसुन्धए णं अरहा पंचसवणे हुत्था, तं जहासवणेणं चुते चइत्ता गम्भं वक्कते। ६४–णेमी गं अरहा पंचप्रासिणीए हुत्था, तं जहा-पासिणीहि चुते चइत्ता गम्भं दक्कते / ६५---णेमी णं अरहा पंचचित्तें हुत्था, तं जहा-चित्ताहि चुते चइत्ता गम्भं वक्कते / ६६-पासे णं अरहा पंचविसाहे हुत्था, तं जहा-विसाहाहिं च ते चइत्ता गम्भं वक्कते।] विमल तीर्थकर के पांच कल्याणक उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में हुए / जैसे१. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये / इत्यादि (87) अनन्त तीर्थंकर के पांच कल्याणक रेवती नक्षत्र में हुए / जैसे१. रेवती नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में पाये / इत्यादि (88) / धर्म तीर्थकर के पांच कल्याणक पुष्य नक्षत्र में हुए / जैसे१. पुष्य नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये / इत्यादि (86) / शान्ति तीर्थकर के पाँच कल्याणक भरणी नक्षत्र में हुए / जैसे१. भरणी नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये / इत्यादि (60) कुन्थु तीर्थकर के पाँच कल्याणक कृत्तिका नक्षत्र में हुए / जैसे१. कृत्तिका नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये / इत्यादि (61) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org