________________ पंचम स्थान-प्रथम उद्देश] ऐसे साधन को हेतु कहते हैं। जैसे-अग्नि के होने पर ही धूम होता है और अग्नि के अभाव में धूम नहीं होता है, अतः अग्नि और धूम का अविनाभाव सम्बन्ध है। जिस किसी अप्रत्यक्ष स्थान से धूम उठता हुआ दिखता है, तो निश्चित रूप से यह ज्ञात हो जाता है कि उस अप्रत्यक्ष स्थान पर अग्नि अवश्य है। यहां पर जैसे धूम अग्नि का साधक हेतु है, इसी प्रकार जिस किसी भी पदार्थ का जो भी अविनाभावी हेतु होता है, उसके द्वारा उस पदार्थ का ज्ञान नियम से होता है। इसे ही अनुमानप्रमाण कहते हैं। पदार्थ दो प्रकार के होते हैं-हेतुगम्य और अहेतुगम्य / दूर देश स्थित जो अप्रत्यक्ष पदार्थ हेतु से जाने जाते हैं, उन्हें हेतुगम्य कहते हैं। किन्तु जो पदार्थ सूक्ष्म हैं, देशान्तरित (सुमेरु आदि) और कालान्तरित (राम रावण आदि) हैं, जिसका हेतु से ज्ञान संभव नहीं है, जो केवल प्राप्त पुरुषों के वचनों से ही ज्ञात किये जाते हैं, उन्हें अहेतुगम्य अर्थात् आगमगम्य कहा जाता है। जैसेधर्मास्तिकाय, अर्धमास्तिकाय आदि अरूपी पदार्थ केवल आगम-गम्य हैं, हमारे लिए वे हेतुगम्य नहीं है। प्रस्तुत सूत्रों में हेतु और हेतुवादी (हेतु का प्रयोग करने वाला) ये दोनों ही हेतु शब्द से विवक्षित हैं। जो हेतुवादी असम्यग्दर्शी या मिथ्यादृष्टि होता है, वह कार्य को जानता-देखता तो है, परन्तु उसके हेतु को नहीं जानता-देखता है। वह हेतु-गम्य पदार्थ को हेतु के द्वारा नहीं जानता-देखता / किन्तु जो हेतुवादी सम्यग्दर्शी या सम्यग्दृष्टि होता है, वह कार्य के साथ-साथ उसके हेतु को भी जानता-देखता है / वह हेतु-गम्य पदार्थ को हेतु के द्वारा जानता-देखता है / परोक्ष ज्ञानी जीव ही हेतु के द्वारा परोक्ष वस्तुओं को जानते-देखते हैं। किन्तु जो प्रत्यक्षज्ञानी होते हैं, वे प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं को जानते-देखते हैं। प्रत्यक्षज्ञानी भी दो प्रकार से होते हैंदेशप्रत्यक्षज्ञानी और सकलप्रत्यक्षज्ञानी / देशप्रत्यक्षज्ञानी धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों की अहेतुक या स्वाभाविक परिणतियों को प्रांशिकरूप से ही जानता-देखता है, पूर्णरूप से नहीं जानता-देखता / वह अहेतु (प्रत्यक्ष ज्ञान) के द्वारा अहेतुगम्य पदार्थों को सर्वभावेन नहीं जानता-देखता। किन्तु जो सफल प्रत्यक्षज्ञानी सर्वज्ञकेवली होता है, वह धर्मास्तिकाय आदि अहेतुगम्य पदार्थों की अहेतुक या स्वाभाविक परिणतियों को सम्पूर्ण रूप से जानता-देखता है। वह प्रत्यक्षज्ञान के द्वारा अहेतगम्य पदार्थों को सर्वभाव से जानता-देखता है। ___उक्त विवेचन का निष्कर्ष यह है कि प्रारम्भ के दो सूत्र असम्यग्दर्शी हेतुवादी की अपेक्षा से और तीसरा-चौथा सूत्र सम्यग्दर्शी हेतुवादी की अपेक्षा से कहे गये हैं। पांचवां-छठा सूत्र देशप्रत्यक्षज्ञानी छद्मस्थ की अपेक्षा से और सातवां-पाठवां सूत्र सकलप्रत्यक्षज्ञानी सर्वज्ञकेवली की अपेक्षा से कहे गये हैं। उक्त आठों सूत्रों का पांचवां भेद मरण से सम्बन्ध रखता है / मरण दो प्रकार का कहा गया है सहेतक (सोपक्रम) और अहेतक (निरुपक्रम)। शस्त्राघात आदि बाह्य हेतूओं से होने वाले मरण को सहेतुक, सोयक्रम या अकालमरण कहते हैं। जो मरण शस्त्राघात आदि बाह्य हेतों के विना आयुकर्म के पूर्ण होने पर होता है, वह अहेतुक, निरुपक्रम या यथाकाल मरण कहलाता है। असम्यग्दर्शी हेतुवादी का अहेतुक मरण अज्ञानमरण कहलाता है और सम्यग्दर्शी हेतुवादी का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org