________________ بم 476 ] { स्थानाङ्गसूत्र पांच अहेतु कहे गये हैं। जैसे१. अहेतु को नहीं जानता है। 2. अहेतु को नहीं देखता है। 3. अहेतु की श्रद्धा नहीं करता है / 4. अहेतु को प्राप्त नहीं करता है। 5. अहेतुक छद्मस्थमरण मरता है (76) / ८०-पंच महेऊ पण्णता, तं जहा- अहेउणा ण जाणति, जाव (अहे उणा ण पासति, अहेउणा ण बुज्झति, अहे उणा गाभिगच्छति), अहेउणा छउमत्थमरणं मरति / पुनः पांच अहेतु कहे गये हैं / जैसे१. अहेतु से नहीं जानता है / 2. अहेतु से नहीं देखता है। 3. अहेतु से श्रद्धा नहीं करता है। 4. अहेतु से प्राप्त नहीं करता है। 5. अहेतुक छद्मस्थमरण मरता है (80) / ८१-पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा-अहेडं जाणति, जाव (अहेउ पासति, अहेउं बुज्झति, अहे अभिगच्छति), अहे केवलिमरणं मरति / पुनः पांच अहेतु कहे गये हैं / जैसे१. अहेतु को जानता है। 2. अहेतु को देखता है। 3. अहेतु की श्रद्धा करता है। 4. अहेतु को प्राप्त करता है / 5. अहेतुक केवलि-मरण मरता है (81) / ८२-पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा-अहेउणा जाणति, जाव (अहेउणा पासति, अहेउणा बुज्झति, अहेउणा अभिगच्छति), अहेउणा केवलिमरणं मरति / पुनः पांच अहेतु कहे गये हैं। जैसे१. अहेतु से जानता है / 2. अहेतु से देखता है। 3. अहेतु से श्रद्धा करता है। 4. अहेतु से प्राप्त करता है। 5. अहेतुक केवलि-मरण मरता है (82) / विवेचन-उपर्युक्त आठ सूत्रों में से प्रारम्भ के चार सूत्र हेतु-विषयक हैं और अन्तिम चार सूत्र अहेतु-विषयक हैं। जिसका साध्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध निश्चित रूप से पाया जाता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org