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________________ पंचम स्थान-प्रथम उद्देश ] [473 देता है, या मेरी निर्भत्सना करता है, या बांधता है, या रोकता है, या छविच्छेद करता है, या मूछित करता है, या उपद्रत करता है, वस्त्र या पात्र या कम्बल, या पादपोंछन का छेदन करता है, या विच्छेदन करता है, या भेदन करता है, या अपहरण करता है। 4. यदि मैं इन्हें सम्यक् प्रकार अविचल भाव से सहन नहीं करूंगा, क्षान्ति नहीं रखूगा, तितिक्षा नहीं रखूगा और उनसे प्रभावित होऊंगा, तो मुझे क्या होगा? मुझे एकान्त रूप से पापकर्म का संचय होगा। 5. यदि मैं इन्हें सम्यक् प्रकार अविचल भाव से सहन करूगा, क्षान्ति रख गा, तितिक्षा रखू गा, और उनसे प्रभावित नहीं होऊंगा, तो मुझे क्या होगा? एकान्त रूप से कर्म-निर्जरा होगी। __इन पांच कारणों से छमस्थ पुरुष उदयागत परीषहों और उपसर्गों को सम्यक् प्रकार अविचल भाव से सहता है, शान्ति रखता है, तितिक्षा रखता है, और उनसे प्रभावित नहीं होता है। ७४--पंचहि ठाहिं केवली उदिपणे परिसहोवसग्गे सम्मं सहेज्जा जाव (खमेज्जा तितिक्खेज्जा) अहियासेज्जा, त जहा 1. खित्तचित्ते खलु अयं पुरिसे / तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा तहेव जाव (प्रवहसति वा णिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा भति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिदति वा) अवहरति वा / 2. दित्तचित्ते खलु अयं पुरिसे। तेण मे एस पुरिसे जाव (अक्कोसति वा प्रवहसति वा णिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रु भति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुछणच्छिदति वा विच्छिदति वा मिदति वा) अवहरति वा। 3. जक्खाइ8 खलु अयं पुरिसे। तेण मे एस पुरिसे जाव (अक्कोसति वा अवहसति वा मिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रु भति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुछणच्छिदति वा विच्छिदति वा भिदति वा) प्रवहरति वा। 4. ममं च णं तम्भववेयणिज्जे कम्मे उदिण्णे भवति / तेण मे एस पुरिसे जाव (अक्कोसति वा अवहसति बा णिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रुभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा ति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुछणच्छिदति वा बिच्छिदति वा भिति वा) अवहरति वा। 5. ममं च णं सम्म सहमाणं खममाणं तितिक्खमाणं अहियासेमाणं पासेत्ता बहवे अण्णे छउमत्था समणा णिग्गंथा उदिण्णे-उदिण्णे परोसहोवसग्गे एवं सम्मं सहिस्संति जाव (खमिस्संति तितिक्खस्संति) अहियासिस्संति / इच्चेतेहि पंचहि ठाणेहि केवली उदिण्णे परोसहोवसग्गे सम्मं सहेजा जाव (खमेज्जा तितिक्खेज्जा) अहियासेज्जा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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