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________________ 474 ] [ स्थानाङ्गसूत्र पांच कारणों से केवली उदयागत परीषहों और उपसर्गों को सम्यक् प्रकार अविचल भाव से सहते हैं, क्षान्ति रखते हैं, तितिक्षा रखते हैं, और उनसे प्रभावित नहीं होते हैं / जैसे 1. यह पुरुष निश्चय से विक्षिप्तचित्त है-शोक आदि से बेभान है, इसलिए यह मुझ पर आक्रोश करता है, मुझे गाली देता है या मेरा उपहास करता है, या मुझे बाहर निकालने की धमकी देता है या मेरी निर्भत्सना करता है या मुझे बांधता है या रोकता है या छविच्छेद करता है या वधस्थान में ले जाता है या उपद्रत करता है, वस्त्र या पात्र या कम्बल या पादपोंछन का छेदन करता है या विच्छेदन करता है या भेदन करता है, या अपहरण करता है। 2. यह पुरुष निश्चय से दृप्तचित्त (उन्माद-युक्त) है, इसलिए यह मुझ पर आक्रोश करता है, मुझे गाली देता है या मेरा उपहास करता है या मुझे बाहर निकालने की धमकी देता है या मेरी निर्भत्सना करता है या मुझे बांधता है या रोकता है या छविच्छेदन करता है या वधस्थान में ले जाता है या उपद्रत करता है, वस्त्र या पात्र या कम्बल या पादपोंछन का छेदन करता है या भेदन करता है या अपहरण करता है। 3. यह पुरुष निश्चय से यक्षाविष्ट (यक्ष से प्रेरित) है, इसलिए यह मुझ पर अाक्रोश करता है, मुझे गाली देता है, मेरा उपहास करता है, मुझे बाहर निकालने की धमकी देता है, मेरी निर्भत्सना करता है, या मुझे बांधता है, या रोकता है, या छविच्छेद करता है, या वधस्थान में ले जाता है, या उपद्रत करता है, वस्त्र, या पात्र, या कम्बल, या पादपोंछन का छेदन करता है, या विच्छेदन करता है, या भेदन करता है, या अपहरण करता है। 4. मेरे इस भव में वेदन करने योग्य कर्म उदय में आरहा है, इसलिए यह पुरुष मुझ पर आक्रोश करता है-मुझे गाली देता है, या मेरा उपहास करता है, या मुझे बाहर निकालने की धमकी देता है, या मेरी निर्भत्सना करता है, या मुझे बांधता है, या रोकता है, या छविच्छेद करता है, या वधस्थान में ले जाता है, या उपद्रत करता है, वस्त्र, या पात्र, या कम्बल, या पादपोंछन का छेदन करता है, या विच्छेदन करता है, या भेदन करता है, या अपहरण करता है। 5. मुझे सम्यक प्रकार अविचल भाव से परीषहों और उपसर्गों को सहन करते हुए, शान्ति रखते हुए, तितिक्षा रखते हुए, और प्रभावित नहीं होते हुए देखकर बहुत से अन्य छद्मस्थ श्रमणनिर्ग्रन्थ उदयागत परीषहों और उदयागत उपसर्गों को सम्यक् प्रकार अविचल भाव से सहन करेंगे, क्षान्ति रखेंगे, तितिक्षा रखेंगे और उनसे प्रभावित नहीं होंगे। इन पांच कारणों से केवली उदयागत परीषहों और उपसर्गों को सम्यक प्रकार अविचल भाव से सहन करते हैं, क्षान्ति रखते हैं, तितिक्षा रखते हैं और उनसे प्रभावित नहीं होते हैं। हेतु-सूत्र ७५-पंच हेऊ पण्णता, तं जहा हे ण जाति, हे ण पासति, हेउं ण बुज्झति, हे णाभिगच्छति, हे अण्णाणमरणं मरति / हेतु पांच कहे गये हैं / जैसे१. हेतु को (सम्यक् ) नहीं जानता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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