________________ 470 ] [ स्थानाङ्गसूत्र देवराज देवेन्द्र शक्र के संग्राम करने वाले पांच अनीक और पाँच अनीकाधिपति कहे गये हैं / जैसे अनीक---१. पादातानीक, 2. पीठानीक, 3, कुजरानीक 4. वृषभानीक, 5. रथानीक / अनीकाधिपति- 1. हरिनैगमेषी-पादातानीक-अधिपति / 2. अश्वराज वायु-पीठानीक-अधिपति / 3. हस्तिराज ऐरावण--कुजरानीक-अधिपति / 4. दाधि-वृषभानीक-अधिपति / 5. माठर--रथानीक-अधिपति (64) / ६५-ईसाणस्स णं देविदस्स देवरग्णो पंच संगामिया अणिया जाव पायत्ताणिए, पौढाणिए, कुजराणिए, उसमाणिए, रधाणिए / लहुपरक्कमे पायत्ताणियाधिवती, महावाऊ पासराया पीढाणियाहिवती, पुप्फदंते हस्थिराया कुजराणियाहिवती, महादामड्डी उसभाणियाहिवती महामाढरे रधाणियाहिवतो / देवराज देवेन्द्र ईशान के संग्राम करने वाले पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं / जैसे अनीक-१. पादातानीक, 1. पीठानीक, 3. कुजरानीक, 4. वृषभानीक, 5. रथानीक / अनीकाधिपति- 1. लघुपराक्रम-पादातानीक-अधिपति / 2. अश्वराज महावायु-पीठानीक-अधिपति / 3. हस्तिराज पुष्पदन्त-कजरानीक-अधिपति / 4. महादामधि-वृषभानीक-अधिपति / 5. महामाठर-रथानीक-अधिपति (65) / 66 -जधा सक्कस्स तहा सन्वेसि दाहिणिल्लाणं जाव धारणस्स / जिस प्रकार देवराज देवेन्द्र शक के पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं, उसो प्रकार प्रारणकल्प तक के सभी दक्षिणेन्द्रों के भी संग्राम करने वाले पांच-पांच अनीक और पांच पांच अनीकाधिपति जानना चाहिए (66) / ६७-जधा ईसाणस्स तहा सव्वेसि उत्तरिल्लाणं जाव अच्चुतस्स / जिस प्रकार देवराज देवेन्द्र ईशान के पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं, उसी प्रकार अच्युतकल्प तक के सभी उत्तरेन्द्रों के भी संग्राम करनेवाले पांच-पांच अनीक और पांचपांच अनीकाधिपति जानना चाहिए (67) / देवस्थिति-सूत्र ६८-सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अभंतरपरिसाए देवाणं पंच पलिमोवमाई ठितो पणत्ता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org