________________ पंचम स्थान-प्रथम उद्देश ] [466 __ अनीकाधिपति- 1. दक्ष--पादातानीक-अधिपति / 2. सुग्रीव अश्वराज-पीठानीक-अधिपति / 3. सुविक्रम हस्तिराज--कुजरानीक-अधिपति / 4. श्वेतकण्ठ-महिषानीक अधिपति / 5. नन्दोत्तर-रथानीक-अधिपति (60) / ६१--वेणुदेवस्स णं सुण्णिदस्त सुवष्णकुमाररणो पंच संगामियाणिया, पंच संगामियाणियाहिपती पण्णता, तं जहा--पायत्ताणिए, एवं अधा धरणस्स तथा वेणुदेवस्सवि / वेणुदालियस्स जहा भूताणंदस्स। सुपर्ण कुमारराज सुपर्णेन्द्र वेणुदेव के संग्राम करने वाले पांच अनीक और अनीकाधिकपति धरण के समान कहे गये हैं। जैसे--- अनीक-१. पादातानीक, 2. पीठानीक, 3. कुजरानीक, 4 महिषानीक, 5. स्थानीक / अनीकाधिपति-- 1. भद्रसेन–पादातानीक-अधिपति / 2. अश्वराज यशोधर-पीठानीक-अधिपति / 3. हस्तिराज सुदर्शन--जरानीक-अधिपति / 4. नीलकण्ठ-महिषानीक-अधिपति / 5. आनन्द–रथानीक-अधिपति (61) / जैसे भूतानन्द के पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं, उसी प्रकार नागकुमारराज, नागकुमारेन्द्र वेणुदालि के भी पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं / ६२-जधा धरणस्स तहा सव्वेसि दाहिणिल्लाणं जाव घोसस्स / जिस प्रकार धरण के पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं, उसी प्रकार सभी दक्षिण दिशाधिपति शेष भवनपतियों के इन्द्र हरिकान्त, अग्निशिख, पूर्ण, जलकान्त, अमितगति, वेलम्ब और घोष के भी संग्राम करने वाले पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति क्रमश:--- भद्रसेन, अश्वराज यशोधर, हस्तिराज सुदर्शन, नीलकण्ठ और प्रानन्द जानना चाहिये। ६३–जधा भूताणंदस्स सधा सव्वेसि उत्तरिल्लाणं जाव महाघोसस्स / जिस प्रकार भूतानन्द के पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं, उसी प्रकार उत्तरदिशाधिपति शेष सभी भवनपतियों के अर्थात् वेणुदालि, हरिस्सह, अग्निमानव, विशिष्ट, जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभंजन और महाघोष के पांच-पांच अनीक और पांच-पांच अनीकाधिपति उन्हीं नामवाले जानना चाहिये (63) / ६४---सक्कस्स णं देविदस्स देवरणो पंच संगामिया अणिया, पंच संगामियाणियाधिवती पण्णत्ता, त जहा-पायत्ताणिए, (पोढाणिए, कुजराणिए), उसमाणिए, रधाणिए / हरिणेगमेसी पायत्ताणियाधिवती, वाऊ पास राया पीढाणियाधिवती, एरावणे हरिथराया कुजराणियाधिपती, दामड्डी उसभाणियाधिपती, माढरे रधाणियाधिपती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org