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________________ पंचम स्थान-प्रथम उद्द श ] [ 461 ४२--पंच ठाणाई (समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाइं णिच्चं पसत्थाई णिच्चं अब्भणुग्णाताई) भवंति, तं जहा-ठाणातिए, उक्कुडासहिए, पडिमट्टाई, वीरासहिए, सज्जिए / / / श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पांच स्थान सदा वर्णित किये है, कीर्तित किये हैं, व्यक्त किये हैं, प्रशंसित किये हैं और अभ्यनुज्ञात किये हैं / जैसे--- 1. स्थानायतिक--दोनों भुजाओं को नीचे घुटनों तक लंबाकर कायोत्सर्ग मुद्रा से खड़े रहने वाला मुनि / 2. उत्कुटकासनिक--उकड़, बैठने वाला मुनि / 3. प्रतिमास्थायी--प्रतिमा-मूत्ति के समान पद्मासन से बैठने वाला मुनि / अथवा एकरात्रिक आदि भिक्षुप्रतिमा को धारण करने वाला मुनि / 4. वीरासनिक--वीरासन ने बैठने वाला मुनि / 5. नैषधिक--पालथी लगाकर बैठने वाला मुनि / विवेचन--भूमि पर पैर रखके सिंहासन या कुर्सी पर बैठने से शरीर की जो स्थिति होती है, उसी स्थिति में सिंहासन या कुर्सी के निकाल देने पर स्थित रहने को वीरासन कहते हैं / इस आसन से वीर पुरुष ही अवस्थित रह सकता है, इसीलिए यह वीरासन कहलाता है। निषद्या शब्द का सामान्य अर्थ बैठना है आगे इसी स्थान के सूत्र 50 में इसके पांच भेदों का विशेष वर्णन किया जायगा / ४३-पंच ठाणाई (समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तिताइं णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं प्रभYण्णाताई) भवंति, तं जहा-दंडायतिए, लगंडसाई, प्रातावए, अवाउडए, अकंडूयए।।। श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण-निग्रन्थों के लिए पांच स्थान सदा वणित किये हैं, कीत्तित किये हैं, व्यक्त किये हैं, प्रशंसित किये हैं और अभ्यनुज्ञात किये हैं। जैसे 1. दण्डायतिक-काठ के दंड के समान सीधे पैर पसार कर चित सोने वाला मुनि / 2. लगंडशायी-एक करवट से या जिसमें मस्तक और एड़ी भूमि में लगे और पीठ भूमि में न लगे, ऊपर उठी रहे, इस प्रकार से सोने वाला मुनि / 3. अातापक-शीत-ताप आदि को सहने वाला मुनि / 4. अपावृतक-वस्त्र-रहित होकर रहने वाला मुनि / / 5. अकण्डूयक--शरीर को नहीं खुजाने वाला मुनि (43) / महानिर्जर-सूत्र ४४-पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा--अगिलाए आयरियवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए उवज्झायवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए थेरवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए तवस्सिवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए गिलाणवेयावच्चं करेमाणे / / पांच स्थानों से श्रमण-निर्ग्रन्थ महान् कर्म-निर्जरा करने वाला और महापर्यवसान (संसार का सर्वथा उच्छेद या जन्म-मरण का अन्त करने वाला) होता है / जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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