________________ 460] [ स्थानाङ्गसूत्र 4. दृष्टलाभिक-सामने दीखने वाले पाहार-पान को लेने वाला भिक्षुक / 5. पृष्टलाभिक-'क्या भिक्षा लोगे' ? यह पूछे जाने पर ही भिक्षा लेने वाला भिक्षुक (38) / ३६---पंच ठाणाई जाव (समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसस्थाई णिच्चं) प्रभणुण्णाताई भवंति, तं जहाप्रायबिलिए, णिव्विइए, पुरिमड्डिए, परिमिपिंडवातिए, भिणपिंडवातिए / पुनः श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण-निर्गन्थों के लिए पांच (अभिग्रह) स्थान सदा वणित किये हैं, कीतित किये हैं, व्यक्त किये हैं, प्रशंसित किये हैं, और अभ्यनुज्ञात किये हैं। जैसे 1. आचाम्लिक-आयंबिल' करने वाला भिक्षक। 2. निविकृतिक—धी आदि विकृतियों का त्याग करने वाला भिक्षुक / 3. पूर्वाधिक—दिन के पूर्वार्ध में भोजन नहीं करने के नियम वाला भिक्षुक / 4. परिमितपिण्डपातिक-परिमित अन्न-पिंडों या वस्तुओं की भिक्षा लेने वाला भिक्षुक / 5. भिन्नपिण्डपातिक-खंड-खंड किये अन्न-पिण्ड को भिक्षा लेने वाला भिक्षुक (36) / ४०-पंच ठाणाई जाव (समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्च वणिताई णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं) अब्भणुण्णाताई भवंति, तं जहा---अरसाहारे, विरसाहारे, अंताहारे, पंताहारे, लूहाहारे // पुनः श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पांच (अभिग्रह) स्थान सदा वणित किये हैं, कीर्तित किये हैं, व्यक्त किये हैं, प्रशंसित किये हैं और अभ्यनुज्ञात किये हैं / जैसे 1. अरसाहार हींग आदि के वधार से रहित भोजन लेने वाला भिक्षक / 2. विरसाहार–पुराने धान्य का भोजन करने वाला भिक्षुक / 3. अन्त्याहार-बचे-खुचे आहार को लेने वाला भिक्षुक / 4. प्रान्ताहार--तुच्छ आहार को लेने वाला भिक्षुक / 5. रूक्षाहार--रूखा-सूखा आहार करने वाला भिक्षुक (40) / ४१--पंच ठाणाई (समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिगंथाणं णिच्चं वण्णिताई पिच्चं कित्सिताई णिच्चं बुइयाइं णिच्चं पसस्थाई णिच्च) अब्भणुण्णाताई भवंति, तं जहा---अरसजीवी, विरसजीवी, अंतजीवी, पंतजोवी, लहजीवी। पुनः श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पांच (अभिग्रह) स्थान सदा वणित किये हैं, कोत्तित किये हैं, व्यक्त किये हैं, प्रशंसित किये हैं और अभ्यनुज्ञात किये हैं / जैसे--- 1. अरसजीवी--जीवन भर रस-रहित आहार करने वाला भिक्षुक।। 2. विरसजीवी--जीवन भर विरस हुए पुराने धान्य का भात आदि लेने वाला भिक्षुक / 3. अन्त्यजीवी-जीवन भर बचे-खुचे आहार को लेने वाला भिक्षुक / 4. प्रान्तजीवी--जीवन भर तुच्छ आहार को लेने वाला भिक्षुक / 5. रूक्षजीवी-जीवन भर रूखे-सूखे आहार को लेने वाला भिक्षुक (41) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org