________________ 440 ] [स्थानाङ्गसूत्र ६३४-चबिहे गेए पण्णत्ते, तं जहा–उक्खित्तए, पत्तए, मंदए, रोविंदए,। गेय (गायन) चार प्रकार का कहा गया है / जैसे--- 1. उत्क्षिप्तक गेय--नाचते हुए गायन करना / 2. पत्रक गेय-पद्य-छन्दों का गायन करना, उत्तम स्वर से छन्द बोलना। 3. मन्द्रक गेय-मन्द-मन्द स्वर से गायन करना / 4. रोविन्दक गेय-शनैः शनैः स्वर को तेज करते हुए गायन करना (634) / ६३५-चउविहे मल्ले पण्णत्ते, तं जहा-गंथिमे, वेढिमे, पूरिमे, संघातिमे / माल्य (माला) चार प्रकार की कही गई है / जैसे१. ग्रन्थिममाल्य--सूत के धागे से गूथ कर बनाई जाने वाली माला / 2. बेष्टिममाल्य-चारों ओर फूलों को लपेट कर बनाई गई माला। 3. पूरिममाल्य-फूल भर कर बनाई जाने वाली माला। 4. संघातिममाल्य--एक फूल की नाल आदि से दूसरे फूल आदि को जोड़कर बनाई गई माला (635) / ६३६-चउबिहे अलंकारे पण्णत्ते, तं जहा-केसालंकारे, वस्थालंकारे, मल्लालंकारे, आभरणालंकारे। अलंकार चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. केशालंकार-शिर के बालों को सजाना। 2. वस्त्रालंकार-सुन्दर वस्त्रों को धारण करना / 3. माल्यालंकार-मालाओं को धारण करना / 4. प्राभरणालंकार-सुवर्ण-रत्नादि के आभूषणों को धारण करना (636) / ६३७–चउन्विहे अभिगए पण्णत्ते, तं जहा-दिलृतिए, पाडिसुते, सामण्णओविणिवाइयं, लोगमभावसिते। अभिनय (नाटक) चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. दार्टान्तिक-किसी घटना-विशेष का अभिनय करना / 2. प्रातिश्रत-रामायण, महाभारत आदि का अभिनय करना / 3. सामान्यतोविनिपातिक-राजा-मन्त्री आदि का अभिनय करना / 4. लोकमध्यावसित-मानवजीवन की विभिन्न अवस्थाओं का अभिनय करना (637) / विमान-सूत्र ६३८-सणंकुमार-माहिदेसु णं कप्पेसु विमाणा चउवण्णा पण्णत्ता, तं जहा–णीला, लोहिता, हालिद्दा, सुक्किल्ला। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों में विमान चार वर्ण वाले कहे गये हैं। जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org