________________ [ स्थानाङ्गसूत्र द्वीन्द्रिय जीवों को नहीं मारने वाले पुरुष के चार प्रकार का संयम होता है, जैसे-- 1. द्वीन्द्रिय जीवों के जिह्वामय सुख का घात नहीं करता, यह पहला संयम है। 2. द्वीन्द्रिय जीवों के जिहामय दुःख का संयोग नहीं करता. यह दसरा संयम है। 3. द्वीन्द्रिय जीवों के स्पर्शमय सुख का घात नहीं करता, यह तीसरा संयम है / 4. द्वीन्द्रिय जीवों के स्पर्शमय दु:ख का संयोग नहीं करता, यह चौथा संयम है (616) / ६१७-बेइंदिया जं जीवा समारभमाणस्स चउविधे प्रसंजमे कज्जति, तं जहा-जिब्भामयातो सोक्खातो ववरोवित्ता भवति, जिन्भामएणं दुक्खणं संजोगिता भवति, फासामयातो सोक्खातो पवरोवेत्ता भवति, (फासामएणं दुक्खेणं संजोगित्ता भवति)। द्वीन्द्रिय जीवों का घात करने वाले पुरुष के चार प्रकार का असंयम होता है / जैसे१. द्वीन्द्रिय जीवों के जिह्वामय सुख का घात करता है, यह पहला असंयम है / 2. द्वीन्द्रिय जीवों के जिह्वामय दुःख का संयोग करता है, यह दूसरा असंयम है। 3. द्वीन्द्रिय जीवों के स्पर्शमय सुख का घात करता है, यह तीसरा असंयम है। 4. द्वीन्द्रिय जीवों के स्पर्शमय दुःख का संयोग करता है, यह चौथा असंयम है (617) / क्रिया-सूत्र ६१८-सम्मद्दिट्ठियाणं णेरइयाणं चत्तारि किरियानो पण्णत्तानो, त जहा-प्रारंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया। सम्यदृष्टि नारकियों में चार क्रियाएं कही गई हैं / जैसे. 1. प्रारम्भिकी क्रिया, 2. पारिग्रहिकी क्रिया, 3. मायाप्रत्ययिकी क्रिया, 4. अप्रत्याख्यान क्रिया (618) / ६१६-सम्मबिटियाणमसुरकुमाराणं चत्तारि किरियानो पण्णताओ, तं जहा—(प्रारंभिया, पारिम्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया)। सम्यग्दृष्टि असुरकुमारों में चार क्रियाएं कही गई हैं / जैसे१. प्रारम्भिकीक्रिया, 2. पारिग्रहिकी क्रिया, 3. मायाप्रत्ययिकी क्रिया, 4. अप्रत्याख्यान क्रिया (616) / ६२०-एवं-विलिदियवज्जं जाव वेमाणियाणं / इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर सभी सम्यग्दृष्टिसम्पन्न दण्डकों में चार-चार क्रियाएं जाननी चाहिए। (विकलेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि होने से उनमें पांचवीं मिथ्या-दर्शनक्रिया नियम से होती है, अतः उनका वर्जन किया गया है) (620) / गुण-सूत्र ६२१-चहि ठाहिं संते गुणे णासेज्जा, तं जहा--कोहेणं, पडिणिवेसेणं, अकयण्णुयाए, मिच्छतामिणिवेसेणं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org