________________ 434] [ स्थानाङ्गसूत्र 1. कोई पूर्वकाल में भी मित्र था और आगे भी मित्र रहेगा। 2. कोई पूर्वकाल में तो मित्र था, वर्तमान में भी मित्र है, किन्तु आगे अमित्र हो जायगा / 3. कोई वर्तमान में अमित्र है, किन्तु आगे मित्र हो जायगा / 4. कोई वर्तमान में भी अमित्र है और आगे भी अमित्र रहेगा (610) / ६११–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--मित्ते णाममेगे मित्तरूवे, मिते णाम मेगे अमित्तरूवे, अमित्ते णाममेगे मित्तरूवे, अमित्ते णाममेगे अमित्तरूवे। पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. मित्र और मित्ररूप-कोई पुरुष मित्र होता है और उसका व्यवहार भी मित्र के समान होता है। 2. मित्र और अमित्ररूप-कोई पुरुष मित्र होता है, किन्तु उसका व्यवहार अमित्र के समान होता है। 3, अमित्र और मित्ररूप-कोई पुरुष अमित्र होता है, किन्तु उसका व्यवहार मित्र के समान होता है। 4. अमित्र और अमित्ररूप-कोई पुरुष अमित्र होता है और उसका व्यवहार भी अमित्र के समान होता है (611) / मुक्त-अमुक्त-सून ६१२--चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--मुत्ते णाममेगे मुत्ते, मुत्ते णाममेगे अमुत्ते, अमुत्ते णाममेगे मुत्ते, प्रमुत्ते णाममेगे अमुत्ते / पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. मुक्त और मुक्त-कोई साधु पुरुष परिग्रह का त्यागी होने से द्रव्य से भी मुक्त होता है और परिग्रहादि में आसक्ति का अभाव होने से भाव से भी मुक्त होता है / 2. मुक्त और अमुक्त-कोई दरिद्र पुरुष परिग्रह से रहित होने के कारण द्रव्य से मुक्त है, किन्तु उसकी लालसा बनी रहने से अमुक्त है। 3, अमुक्त और मुक्त-कोई पुरुष द्रव्य से अमुक्त होता है, किन्तु भाव से भरतचक्री के समान मुक्त होता है। 4. अमुक्त और अमुक्त-कोई पुरुष न द्रव्य से ही मुक्त होता है और न भाव से ही मुक्त होता है, जैसे--लोभी श्रीमन्त (612) / ६१३-~चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-मुत्ते णाममेगे मुत्तरूवे, मुत्ते णाममेगे अमुत्तरूवे, प्रमुत्ते णाममेगे मुत्तरूवे, प्रमुत्ते णाममेगे प्रमुत्तरूवे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं-- 1. मुक्त और मुक्त रूप---कोई पुरुष परिग्रहादि से मुक्त होता है और उसका रूप-बाह्य स्वरूप भी मुक्तवत् होता है / जैसे-वह सुसाधु जिसकी मुखमुद्रा से वैराग्य झलकता हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org