________________ 408 ] [ स्थानाङ्गसूत्र इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. हिरण्यगोल समान, 2. सुवर्णगोल समान, 3. रत्नगोल समान, 4. वज्रगोल समान / विवेचन—इस सूत्र की व्याख्या अनेक प्रकार से करने का निर्देश टीकाकार ने किया है। जैसे-चाँदी के गोले से तत्सम आकार वाला सोने का गोला अधिक मूल्य और भार वाला, उससे भी रत्न और वज्र (हीरा) का गोला उत्तरोत्तर अधिक मूल्य एवं भार वाला होता है, वैसे ही चारों गोलों के समान पुरुष भी गुणों की उत्तरोत्तर अधिकता वाले होते हैं, समृद्धि की अपेक्षा भी उत्तरोत्तर अधिक सम्पन्न होते हैं, हृदय की निर्मलता की अपेक्षा भी उत्तरोत्तर अधिक निर्मल हृदय वाले होते हैं और पूज्यता--बहुसन्मान आदि की अपेक्षा भी उत्तरोत्तर पूज्य और सम्माननीय होते हैं / इसी प्रकार आचरण आदि की अपेक्षा से भी पुरुषों के चार प्रकार जानना चाहिए (547) / पत्र-सूत्र ५४८–चत्तारि पत्ता पण्णत्ता, तं जहा-असिपत्ते, करपत्ते, खुरपत्ते, कलंबचीरियापत्ते / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा–प्रसिपत्तसमाणे, जाव (करपत्तसमाणे, खुरपत्तसमाणे), कलंबचोरियापत्तसमाणे / पत्र (धार वाले फलक) चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. असिपत्र (तलवार का पतला भाग-पत्र) 2. करपत्र (लकड़ी चीरने वाली करोत का पत्र) 3. क्षुरपत्र (छुरा का पत्र) 4. कदम्बचीरिका पत्र / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. असिपत्र समान, 2. करपत्र समान, 3. क्षुरपत्र समान, 4. कदम्बचीरिका पत्र समान / विवेचन- इस सूत्र की व्याख्या इस प्रकार जानना चाहिए --- 1. जैसे-असिपत्र (तलवार) एक ही प्रहार से शत्रु का शिरच्छेदन कर देता है , उसी प्रकार जो पुरुष एक बार ही कुटुम्बादि से स्नेह का छेदन कर देता है, वह अमिपत्र समान पुरुष है। 2. जैसे-करपत्र (करोंत) वार-वार इधर से उधर आ-जाकर काठ का छेदन करता है, उसी प्रकार वार-वार की भावना से जो क्रमश: स्नेह का छेदन करता है, वह करपत्र के समान पुरुष है। 3. जैसे--क्षुरपत्र-(छुरा) शिर के बाल धीरे-धीरे अल्प-अल्प मात्रा में काट पाता है, उसी प्रकार जो कुटुम्ब का स्नेह धीरे-धीरे छेदन कर पाता है, वह क्षुरपत्र के समान पुरुष है। 4. कदम्बचीरिका का अर्थ एक विशिष्ट शस्त्र या तीखी नोक वाला एक प्रकार का घास है। उसकी धार के समान धार वाला कोई पुरुष होता है। वह धीरे-धीरे बहत धीमी गति से अत्यल्प मात्रा में कुटुम्ब का स्नेह-छेदन करता है, वह पुरुष कदम्बचीरिका-पत्र समान कहा गया है (548) / / कट-सूत्र ५४६-चत्तारि कडा पण्णत्ता, त जहा-सुबकडे, विदलकडे, चम्मकडे, कंबलकडे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org