SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 477
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ स्थान–चतुर्थ उद्देश] [ 406 एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-सुबकडसमाणे, जाव (विदलकडसमाणे, चम्मकडसमाणे) कंबलकडसमाणे / कट (चटाई) चार प्रकार का है / जैसे१. शुम्बकट-खजूर से बनी चटाई या घास से बना आसन / 2. विदलकट-बांस की पतली खपच्चियों से बनी चटाई / 3. चर्मकट-चमड़े की पतली धारियों से बनी चटाई या आसन / 4. कम्बलकट-बालों से बना बैठने या बिछाने का वस्त्र / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. गुम्बकट समान, 2. विदलकट समान, 3. चर्मकट समान, 4. कम्बलकट समान / विवेचन–शुम्बकट (खजूर या घास-निर्मित बैठने का आसन) अत्यल्प मूल्य वाला होता है, अतः उसमें रागभाव कम होता है। उसी प्रकार जिसका पुत्रादि में राग या मोह अत्यल्प होता है, वह पुरुष शुम्बकट के समान कहा जाता है। शुम्बकट की अपेक्षा विदलकट अधिक मूल्यवाला होता है अतः उसमें रागभाव अधिक होता है। इसी प्रकार जिसका रागभाव पुत्रादि में कुछ अधिक हो, वह विदलकट के समान पुरुष कहा गया है। विदलकट से चर्मकट और भी अधिक मुल्यवान होने से उसमें रागभाव भी और अधिक होता है। इसी प्रकार जिसका रागभाव पुत्रादि में गाढ़तर हो, उसे चर्मकटसमान जानना चाहिए। तथा जैसे चर्मकट से कम्बलकट अधिक मूल्यवाला होता है, अतः उसमें रागभाव भी अधिक होता है। इसी प्रकार पुत्रादि में गाढ़तम रागभाव वाले पुरुष को कम्बलकट समान जानना चाहिए (546) / तिर्यक्-सूत्र ५५०-चउब्विहा चउप्पया पण्णत्ता, त जहा—एगखुरा, दुखुरा, गंडीपदा, सणप्फया / चतुष्पद (चार पैर वाले) तिर्यच जीव चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. एक खुर वाले-घोड़े, गधे आदि / 2. दो खुर वाले-गाय, भैंस आदि / 3. गण्डीपद-कठोर चर्ममय गोल पैर वाले हाथी, ऊंट आदि / 4. स-नख-पद-लम्बे तीक्ष्ण नाखून वाले शेर, चीता, कुत्ता, बिल्ली आदि / ५५१-च उविहा पक्खी पण्णत्ता, त जहा-चम्मपक्खी, लोमपक्खी, समुगपक्खी, विततपक्खी। पक्षी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. चर्मपक्षी-चमड़े के पांखों वाले चमगीदड़ आदि। 2. रोमपक्षी-रोममय पांखों वाले हंस आदि / 3. समुद्गपक्षी-जिसके पंख पेटी के समान खुलते और बन्द होते हैं। 4. विततपक्षी—जिसके पंख फैले रहते हैं (551) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy