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________________ चतुर्थ स्थान-चतुर्थ उद्देश] [ 407 1. मधुसिक्थगोलासमान–मधुसिक्थ (मोम) के बने गोले के समान कोमल हृदयवाला पुरुष / 2. जतुगोला समान–लाख के गोले के समान किचित् कठिन हृदय वाला, किन्तु जैसे अग्नि के सान्निध्य से जतुगोला शीघ्र पिघल जाता है, इसी प्रकार गुरु-उपदेशादि से शीघ्र कोमल होने वाला पुरुष / 3. दारुगोला समान-जैसे लाख के गोले से लकड़ी का गोला अधिक कठिन होता है, उसी प्रकार कठिनतर हृदय वाला पुरुष / 4. मृत्तिकागोला समान—जैसे मिट्टी का गोला (आग में पकने पर) लकड़ी से भी अधिक __कठिन होता है, उसी प्रकार कठिनतम हृदय वाला पुरुष (545) / ५४६–चत्तारि गोला पण्णत्ता, तं जहा—प्रयगोले. तउगोले, तंबगोले, सीसगोले / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अयगोलसमाणे, जाव (तउगोलसमाणे, तंबगोलसमाणे), सीसगोलसमाणे / पुनः गोले चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. अयोगोल (लोहे का गोला)। 2. वपुगोल (रांगे का गोला)। 3. ताम्रगोल (तांबे का गोला)। 4. शीशगोल (सीसे का गोला)। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. अयोगोलसमान--लोहे के गोले के समान गुरु (भारी) कर्म वाला पुरुष / 2. वपुगोलसमान-रांगे के गोले के समान गुरुतर कर्म बाला पुरुष / 3. ताम्रगोलसमान-तांबे के गोले के समान गुरुतम कर्म वाला पुरुष / 4. शीशगोलसमान-सीसे के गोले के समान अत्यधिक गुरु कर्म वाला पुरुष / विवेचन--अयोगोल आदि के समान चार प्रकार के पुरुषों की उक्त व्याख्या मन्द, तीव, तीव्रतर और तीव्रतम कषायों के द्वारा उपाजित कर्म-भार की उत्तरोत्तर अधिकता से की गई है। टीकाकार ने पिता, माता, पुत्र और स्त्री-सम्बन्धी स्नेह भार से भी करने की सूचना की है। पुरुष का स्नेह पिता की अपेक्षा माता से अधिक होता है, माता की अपेक्षा पुत्र से और भी अधिक होता है तथा स्त्री से और भी अधिक होता है। इस स्नेह-भार की अपेक्षा पुरुष चार प्रकार के होते हैं, ऐसा अभिप्राय जानना चाहिए। अथवा पिता आदि परिवार के प्रति राग की मन्दता-तीव्रता की अपेक्षा यह कथन समझना चाहिए (546) / ५४७----चत्तारि गोला पण्णत्ता, तं जहा-हिरण्णगोले, सुवण्णगोले, रयणगोले, वयरगोले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-हिरण्णगोलसमाणे, जाव (सुवण्णगोलसमाणे रयणगोलसमाणे), वयरगोलसमाणे। पुनः गोले चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. हिरण्य-(चाँदी) गोला, 2. सुवर्ण-गोला, 3. रत्न-गोला, 4. वज्रगोला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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