________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश ] [ 357 2. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर, 3. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के अवसर पर, 4. अर्हन्तों के परिनिर्वाणकल्याण की महिमा के अवसर पर / इन चार कारणों से देव अपने सिंहासन से उठते हैं (444) / ४४५–चहि ठाणेहि देवाणं आसणाई चलेज्जा, तं जहा--अरहंतेहि जायमाणेहि, अरहतेहि पन्वयमाहि, अरहंताणं णाणप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु / चार कारणों से देवों के प्रासन चलायमान होते हैं / जैसे-- 1. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, 2. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर, 3. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने को महिमा के अवसर पर, 4. अर्हन्तों के परिनिर्वाण कल्याण की महिमा के अवसर पर / इन चार कारणों से देवों के आसन चलायमान होते हैं (445) / ४४६-चहि ठाणेहि देवा सीहणायं करेज्जा, तं जहा-अरहतेहि जायमाहि, अरहतेहि पव्वयमाणेहि, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताणं परिणिन्वाणमहिमासु / चार कारणों से देव सिंहनाद करते हैं / जैसे१. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, 2. अर्हन्तों के प्रवजित होने के अवसर पर, 3. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के अवसर पर, 4. अर्हन्तों के परिनिर्वाण कल्याण की महिमा के अवसर पर / इन चार कारणों से देव सिंहनाद करते हैं (446) / ४४७--चउहि ठाणेहि देवा चेलुक्खेवं करेज्जा, तं जहा----अरहतेहि जायमाणेहिं, अरहतेहि पव्वयमाणेहि, अरहंताणं गाणुप्पायमहिमासु अरहताणं परिणिव्वाणमहिमासु / चार कारणों से देव चेलोत्क्षेप (वस्त्र का ऊपर फेंकना) करते हैं / जैसे१. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, 2. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर, 3. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने को महिमा के अवसर पर, 4. अर्हन्तों के परिनिर्वाणकल्याण की महिमा के अवसर पर / इन चार कारणों से देव चेलोत्क्षेप करते हैं (447) / ४४८–चहि ठाणेहि देवाणं चेइयरुक्खा चलेज्जा, तं जहा-अरहतेहिं जायमाहि. अरहतेहिं पध्वयमाहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताणं परिणिन्वाणमहिमासु / ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org