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________________ 356 ] [ स्थानाङ्गसूत्र ४४१-चउहि ठाणेहि देवकहकहए सिया, तं जहा--प्ररहतेहिं जायमाणेहि, अरहतेहिं पव्ययमाणे हैं, अरहताणं गाणुप्पायपहिह्मासु, अरहताणं परिणिव्वाणमहिमासु / चार कारणों से देव-कहकहा (देवों का प्रमोदजनित कल-कल शब्द) होता है / जैसे१. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, 2. अर्हन्नों के प्रत्रजित होने के अवसर पर, 3. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के अवसर पर, 4. अर्हन्तों के परिनिर्वाण कल्याण की महिमा के अवसर पर / इन चार कारणों से देव-कहकहा होता है (441) / ४४२-चउहि ठाणेहि देविदा माणुसं लोगं हवमागच्छंति, एवं जहा तिठाणे जाव लोगंतिया देवा माणुस्सं लोगं हवमागच्छेज्जा। तं जहा --अरहतेहि जायमाणेहि, अरहंतेहि पन्वयमाणेहि, अरहताणं णाणुष्पायमहिमासु, अरहताणं परिणिव्वाणमहिमासु / चार कारणों से देवेन्द्र तत्काल मनुष्यलोक में आते हैं / जैसे१. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, 2. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर, 3. ग्रहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के अवसर पर, 4. अर्हन्तों के परिनिर्वाणकल्याण की महिमा के अवसर पर / इन चार कारणों से देवेन्द्र तत्काल मनुष्यलोक में प्राते हैं (442) / ४४३---एवं-सामाणिया, तायत्तीसगा, लोगपाला देवा, अग्गमहिसीनो दवीग्रो, परिसोववण्णगा देवा, अणियाहिबई देवा, पायरक्खा देवा माणुसं लोग हव्वमागच्छति, तं जहा–अरहतेहि जायमाहि, अरहतेहि पब्धयमाहि, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताणं परिणिन्वाणमहिमासु / इसी प्रकार सामानिक, त्रायत्रिंशत्क, लोकपाल देव, उनकी अग्नमहिषियाँ, पारिषद्यदेव, अनीकाधिपति (सेनापति) देव और आत्मरक्षक देव, उक्त चार कारणों से तत्काल मनुष्यलोक में आते हैं / जैसे 1. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, 2. अर्हन्तों के प्रवजित होने के अवसर पर, 3. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के अवसर पर, 4. अर्हन्तों के परिनिर्वाणकल्याण की महिमा के अवसर पर / इन चार कारणों से उपर्युक्त सर्व देव तत्काल मनुष्यलोक में आते हैं (443) / ४४४–चहि हि देवा अन्भुद्विज्जा, तं जहा-अरहतेहिं जायमाहि, अरहतेहि पदवयमाणेहि, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिध्वामहिमासु / चार कारणों से देव अपने सिंहासन से उठते हैं / जैसे१. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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