________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश] [ 355 2. अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म के व्युच्छेद हो जाने पर, 3. पूर्वगत श्रु त के व्युच्छेद हो जाने पर, 4. अग्नि के व्युच्छेद हो जाने पर। इन चार कारणों से देवलोक में (क्षण भर के लिए) अन्धकार हो जाता है (437) / ४३८–चउहि ठाणेहि देवज्जोते सिया, तं जहा-अरहतेहि जायमाहि, अरहंतेहिं पन्वयमाहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिवाणमहिमासु / चार कारणों से देवलोक में उद्योत होता है / जैसे१. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, 2. अर्हन्तों के प्रवजित होने के अवसर पर, 3. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के अवसर पर, 4. अर्हन्तों के परिनिर्वाणकल्याण की महिमा के अवसर पर / इन चार कारणों से देवलोक में उद्योत होता है (438) / ४३६-चहि ठा!ह देवसण्णिवाते सिया, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहतेहि पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, प्ररहताणं परिणिव्वाणमहिमासु। चार कारणों से देव-सन्निपात (देवों का मनुष्यलोक में प्रागमन) होता है / जैसे१. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, 2. अर्हन्तों के प्रवजित होने के अवसर पर, 3. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के अवसर पर / 4. अर्हन्तों के परिनिर्वाण कल्याण की महिमा के अवसर पर / इन चार कारणों से देवों का मनुष्यलोक में आगमन होता है (436) / ४४०-चहिं ठाणेहि देवक्कलिया सिया, तं जहा–प्ररहतेहि जायमार्गाह, अरहतेहि पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताणं परिणिव्वाणमहिमासु / चार कारणों से देवोत्कलिका (देव-लहरी-देवों का जमघट) होती है / जैसे१. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, 2. अर्हन्तों के प्रवजित होने के अवसर पर, 3. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के अवसर पर, 4. अहंन्तों के परिनिर्वाणकल्याण की महिमा के अवसर पर / इन चार कारणों से देवोत्कलिका होती है (440) / विवेचन उत्कलिका का अर्थ तरंग या लहर है। जैसे पानी में पवन के निमित्त से एक के बाद एक तरंग या लहर उठती है, उसी प्रकार से तीर्थंकरों के जन्मकल्याणक आदि के अवसरों पर एक देव-पंक्ति के बाद पीछे से दूसरी देवपंक्ति आती रहती है। यही आती हुई देव-पंक्ति की परस्परा देवोत्कलिका कहलाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org