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________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश ] [ 346 महाकर्म-अल्पकर्म-श्रमणोपातक-सूत्र ४२८-चत्तारि समणोवासगा षण्णत्ता, तं जहा१. राइणिए समणोवासए महाकम्मे तहेव 4 / [महाकिरिए प्रणायावी प्रसमिते धम्मस्स अणाराधए भवति / 2. [राइणिए समणोवासए अप्पकमे अप्पकिरिए प्रातावी समिए धम्मस्स पाराहए भवति / ] 3. [मोमराइणिए समणोवासए महाकम्मे महाकिरिए प्रणातावी प्रसमिते धम्मस्स अणाराहए भवति / ] 4. [ओमराइणिए समणोवासए प्रत्पकम्मे अप्पकिरिए आतावी समिते धम्मस्स पाराहए भवति / ] कोई श्रमणोपासक चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे--- 1. कोई रात्निक (दीर्घ श्रावकपर्यायवाला) श्रमणोपासक महाकर्मा, महाक्रिय, अनातापी और असमित होने के कारण धर्म का अनाराधक होता है। 2. कोई रात्निक श्रमणोपासक अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, आतापी और समित होने के कारण धर्म का पाराधक होता है। 3. कोई अवमरात्निक (अल्पकालिक श्रावकपर्यायवाला) श्रमणोपासक महाकर्मा, महाक्रिय, अनातापी और असमित होने के कारण धर्म का अनाराधक होता है। 4. कोई अवमरानिक श्रमणोपासक अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, आतापी और समित होने के कारण धर्म का आराधक होता है (428) / महाकर्म-अल्पकर्म-श्रमणोपासिका-सूत्र ४२६-चत्तारि समणोवासियानो पण्णत्तानो, तं जहा१. राइणिया समणोवासिता महाकम्मा तहेव चत्तारि गमा। [महाकिरिया प्रणायावी प्रसमिता धम्मस्स प्रणाराधिया भवति / 2. [राइणिया समणोवासिता अप्पकम्मा अप्पकिरिया प्रातावी समिता धम्मस्स पाराहिया भवति / ] 3. [ोमराइणिया समणोवासिता महाकम्मा महाकिरिया अणायावी असमिता धम्मस्स अणाराधिया भवति / 4. [ोमराइणिया समणोवासिता अप्पकम्मा अप्पकिरिया प्रातावी समिता धम्मस्स __ आराहिया भवति / श्रमणोपासिकाएं चार प्रकार की कही गई हैं / जैसे--- 1. कोई रानिक श्रमणोपासिका महाकर्मा, महाक्रिय, अनातापिनी और असमित होने के कारण धर्म की अनाराधिका होती है। 2. कोई रात्निक श्रमणोपासिका अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, प्रातापिनी और समित होने के कारण धर्म की आराधिका होती है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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