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________________ 348 ] [स्थानाङ्गसूत्र 2 रातिणिए समणे जिग्गंथे अप्पकम्मे अप्पकिरिए प्रातावी समिए धम्मस्स पाराहए भवति / 3. प्रोमरातिणिए समणे णिग्गंथे महाकम्मे महाकिरिए प्रणातावी प्रसमिते धम्मस्स अणाराहए भवति / 4. प्रोमरातिणिए समणे णिग्गथे अप्पकम्मे प्रप्पकिरिए मातावी समिते धम्मस्स माराहए भवति / निर्ग्रन्थ चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कोई श्रमण निर्ग्रन्थ रानिक (दीक्षापर्याय में ज्येष्ठ) होकर भी महाकर्मा, महाक्रिय, (महाक्रियावाला) अनातापी (अतपस्वी) और अक्षमित (समिति-रहित) होने के कारण धर्म का अनाराधक होता है। 2. कोई रात्निक श्रमण निर्ग्रन्थ अल्पकर्मा, अल्पक्रिय (अल्पक्रियावाला) प्रातापी (तपस्वी) __ और समित (समितिवाला) होने के कारण धर्म का पाराधक होता है / 3. कोई निन्थ श्रमण अवमरात्निक (दीक्षापर्याय में छोटा) होकर महाकर्मा, महाक्रिय, अनातापी और असमित होने के कारण धर्म का अनाराधक होता है। 4. कोई अवमरात्निक श्रमण निर्ग्रन्थ अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, आतापी भौर समित होने के ___ कारण धर्म का आराधक होता है (426) / महाकर्म-अल्पकर्म- निधी-सूत्र ४२७-~-चत्तारि णिग्गयोस्रो पण्णत्तामो, तं जहा१. रातिणिया समणी णिग्गंथी एवं चेव 4 / [महाकम्मा महाकिरिया प्रणायावी असमिता धम्मस्स प्रणाराधिया भवति। 2. [रातिणिया समणी णिग्गंथी अप्पकम्मा अप्पकिरिया प्रातावी समिता धम्मस्स आराहिया भवति / 3. [ोमरातिणिया समणी णिग्गंथी महाकम्मा महाकिरिया प्रणायावी असमिता धम्मस्स अणाराधिया भवति / ] 4. [ोमरातिणिया समणी णिग्गंथी अप्पकम्मा अध्पकिरिया मातावी समिता धम्मस्स पाराहिया भवति / ] निर्ग्रन्थियां चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे१. कोई रात्निक श्रमणी निर्गन्थी, महाकर्मा, महाक्रिय, अनातापिनी और असमित होने के ___कारण धर्म की अनाराधिका होती है। 2. कोई रात्निक श्रमणी निर्ग्रन्थी अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, प्रातापिनी और समित होने कारण धर्म की आराधिका होती है। 3. कोई अवमरात्निक श्रमणी निर्ग्रन्थी महाकर्मा, महाक्रिय, अनातापिनी और असमित होने के कारण धर्म की अनाराधिका होती है। 4. कोई अवमरानिक श्रमणी निर्ग्रन्थी अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, प्रातापिनी पौर समित होने के ___ कारण धर्म की पाराधिका होती है (427) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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