________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश ] [ 341 णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, एगे सुयसंपण्णेवि चरित्तसंपणेवि, एगे णो सुयसंपण्णे णो चरित्तसंपणे।] पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे---- 1. श्रुतसम्पन्न, चरित्रसम्पन्न न-कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न होता है, किन्तु चरित्रसम्पन्न नहीं होता। 2. चरित्रसम्पन्न, श्र तसम्पन्न न-कोई पुरुष चरित्रसम्पन्न होता है, किन्तु श्रुतसम्पन्न ___नहीं होता। 3. श्रुतसम्पन्न भी, चरित्रसम्पन्न भी-कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न भी होता है और चरित्र सम्पन्न भी होता है / 4. न श्रुतसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न-कोई पुरुष न श्रुतसम्पन्न होता है और न चरित्रसम्पन्न ही होता है (406) / शील-सूत्र ४१०-चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा–सीलसंपण्णे णाममेगे जो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाममंगे जो सोलसंपण्णे, एगे सीलसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो सीलसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे / एते एक्कवीसं भंगा भाणियव्वा / पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. शीलसम्पन्न, चरित्रसम्पन्न न-कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु चरित्र से सम्पन्न नहीं होता। 2. चरित्रसम्पन्न, शीलसम्पन्न न-कोई पुरुष चरित्रसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता। 3. शीलसम्पन्न भी, चरित्रसम्पन्न भी--कोई पुरुष शीलसम्पन्न भी होता है और चरित्रसम्पन्न भी होता है। 4. न शीलसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न-कोई पुरुष न शीलसम्पन्न होता है और न चरित्र ___सम्पन्न ही होता है (410) / आचार्य-सूत्र ४११-चत्तारि फला पण्णत्ता, तं जहा प्रामलगमहुरे, मुद्दियामहुरे, खीरमहुरे, खंडमहुरे। एवामेव चत्तारि प्रायरिया पण्णत्ता, तं जहा–प्रामलगमहुरफलसमाणे, जाव [मुद्दियामहुरफलसमाणे, खीरमहरफलसमाणे] खंडमहरफलसमाणे / चार प्रकार के फल कहे गये हैं / जैसे१. आमलक-मधुर-यांवले के समान मधुर / 2. मृद्वीका-मधुर-द्राक्षा के समान मधुर / 3. क्षीर-मधुर-दूध के समान मधुर / 4. खण्ड-मधुर-खांड-शक्कर के समान मधुर / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org