________________ 340 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 2. शीलसम्पन्न, रूपसम्पन्न न-कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 3. रूपसम्पन्न भी, शीलसम्पन्न भी-कोई पुरुष रूपसम्पन्न भी होता है और शीलसम्पन्न भी होता है / 4. न रूपसम्पन्न, न शीलसम्पन्न—कोई पुरुष न रूपसम्पन्न होता है और न शीलसम्पन्न ही होता है (406) / ४०७-[चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे गाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूपसंपण्णेवि चरित्तसंपणेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे / पुन: पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. रूपसम्पन्न, चरित्रसम्पन्न न-कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु चरित्रसम्पन्न नहीं होता। 2. चरित्रसम्पन्न, रूपसम्पन्न न-कोई पुरुष चरित्रसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 3. रूपसम्पन्न भी, चरित्रसम्पन्न भी-कोई पुरुष रूपसम्पन्न भी होता है और चरित्रसम्पन्न भी होता है। 4. न रूपसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न-कोई पुरुष न रूपसम्पन्न होता है और न चरित्रसम्पन्न ही होता है (407) / श्रुत-सूत्र ४०८--चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुयसंपण्णे णाममेगे णो सोलसंपण्णे, सोलसंपण्णे गाममेगे णो सुयसंपण्णे, एगे सुयसंपण्णेवि सोलसंपण्णेवि, एगे जो सुयसंपण्णे णो सोलसंपण्णे। पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. श्र तसम्पन्न, शीलसम्पन्न न—कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता। 2. शीलसम्पन्न, श्रुतसम्पन्न न--कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं होता। 3. श्रुतसम्पन्न भी, शीलसम्पन्न भी-कोई पुरुष श्रु तसम्पन्न भी होता है और शीलसम्पन्न भी होता है। 4. न श्रु तसम्पन्न, न शीलसम्पन्न--कोई पुरुष न श्रुतसम्पन्न होता है और न शीलसम्पन्न ही होता है (408) / ४०६–एवं सुरण य चरित्तेण य [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुयसंपण्णे णाममेगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org