________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश ] [ 336 4. न बलसम्पन्न, न शीलसम्पन्न-कोई पुरुष न बलसम्पन्न होता है और न शीलसम्पन्न ही होता है (403) / ४०४-[चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, सं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे गो चरित्तसंपणे / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. बलसम्पन्न, चरित्रसम्पन्न न—कोई पुरुष वलसम्पन्न होता है, किन्तु चरित्रसम्पन्न नहीं होता। 2. चरित्रसम्पन्न, बलसम्पन्न न—कोई पुरुष चरित्रसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। 3. बलसम्पन्न भी, चरित्रसम्पन्न भी-कोई पुरुष बलसम्पन्न भी होता है और चरित्रसम्पन्न भी होता है। 4. न बलसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न--कोई पुरुष न बलसम्पन्न होता है और न चरित्रसम्पन्न ही होता है (404) / रूप-सूत्र ४०५--चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवसंपण्णे णाममेग णो सुयसंपण्णे एवं रूवेण य सोलेण य, रूवेण य चरित्तेण य, सुयसंपण्ण णाम मेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो सुयसंपण्णे / ] पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. रूपसम्पन्न, श्रुतसम्पन्न न—कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं होता। 2. श्रुतसम्पन्न, रूपसम्पन्न न-कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न होता है, किन्तु रूप-सम्पन्न नहीं होता। 3. रूपसम्पन्न भी, श्रुतसम्पन्न भी--कोई पुरुष रूपसम्पन्न भी होता है, और श्रुतसम्पन्न भी होता है। 4. न रूपसम्पन्न, न थ तसम्पन्न-कोई पुरुष न रूपसम्पन्न होता है, और न थ तसम्पन्न ही होता है (405) / ४०६-[चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--रूवसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सोलसंपणे णाममेगे जो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि सोलसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो सीलसंपण्णे / ] पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. रूपसम्पन्न, शीलसम्पन्न न-कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org