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________________ 306 [स्थानाङ्गसूत्र के भीतर बयालीस-बयालीस हजार योजन जाने पर अनुवेलन्धर नागराजों के चार आवास-पर्वत कहे गये हैं। जैसे 1. कर्कोटक 2. विद्य त्प्रभ 3. कैलाश 4. अरुणप्रभ / उनमें पल्योपम को स्थिति वाले यावत् महधिक चार देव रहते हैं / जैसे 1. कर्कोटक 2. कर्दमक 3. कैलाश 4. अरुणप्रभ (331) / ज्योतिष-सूत्र ३३२–लवणे णं समुद्दे चत्तारि चंदा पभासिसु वा पमासंति वा पभासिस्संति वा / चत्तारि सूरिया तविसु वा तवंति वा तविस्संति वा / चत्तारि कित्तियानो जाव चत्तारि भरणीयो। लवण समुद्र में चार चन्द्रमा प्रकाश करते थे, प्रकाश करते हैं और प्रकाश करते रहेंगे। चार सूर्य आताप करते थे, आताप करते हैं और प्राताप करते रहेंगे / चार कृतिका यावत् चार भरणी तक के सभी नक्षत्रों ने चन्द्र के साथ योग किया था, करते हैं और करते रहेंगे (332) / ३३३-चत्तारि अग्गी जाव चत्तारि जमा / नक्षत्रों के अग्नि से लेकर यम तक चार-चार देव कहे गये हैं (333) / ३३४-चत्तारि अंगारा जाव चत्तारि भावकेऊ / चार अंगारक यावत् चार भावकेतु तक के सभी ग्रहों ने चार (भ्रमण) किया था, चार करते हैं और चार करते रहेंगे (334) / द्वार-सूत्र ३३५-लवणस्स णं समुद्दस्स चत्तारि दारा पण्णत्ता, त जहा--विजए, वेजयंते, जयंते, अपराजिते / ते णं दारा चत्तारि जोयणाई विवखंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं पण्णत्ता।। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिग्रोवमद्वितीया परिवसंति, त जहा-विजए, वेजयंते, जयंते, अपराजिए। लवण समुद्र के चार द्वार कहे गये हैं / जैसे--- 1. विजय 2. वैजयन्त 3. जयन्त 4. अपराजित / वे द्वार चार योजन विस्तृत और चार योजन प्रवेश (मुख) वाले कहे गये हैं। उनमें पल्योपम की स्थितिवाले यावत् महधिक चार देव रहते हैं। जैसे 1. विजयदेव 2. वैजयन्तदेव 3. जयन्तदेव 4. अपराजित देव (335) / धातकीषण्डपुष्करवर-सूत्र ३३६-धायइसंडे णं दीवे चत्तारि जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते / धातकीषण्ड द्वीप का चक्रवाल विष्कम्भ (वलय का विस्तार) चार लाख योजन कहा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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