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________________ चतुर्थ स्थान--द्वितीय उद्देश ] 305 महापाताल-सूत्र ३२६-जंबुद्दोवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लायो वेइयंताओ च उदिसि लवणसमई पंचाणउइं जोयणसहस्साई ओगाहेत्ता, एत्थ णं महतिमहालया महालंजरसंठाणसंठिता चत्तारि महापायाला पण्णत्ता, त जहा-वलयामुहे, केउए, जूवए, ईसरे / तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिग्रोवमद्वितीया परिवसंति, त जहा-काले, महाकाले, वेलंबे, पभंजणे / जम्बूद्वीप नामक द्वीप को बाहरी वेदिका के अन्तिम भाग से चारों दिशाओं में लवण समुद्र के भीतर पंचानवे हजार योजन जाने पर चार महापाताल अवस्थित हैं, जो बहुत विशाल एवं बड़े भारी घड़े के समान आकार वाले हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं 1. वड़वामुख (पूर्व में) 2. केतक (दक्षिण में) 3. यूपक (पश्चिम में) 4. ईश्वर (उत्तर में)। उनमें पल्योपम की स्थिति वाले यावत् महधिक चार देव रहते हैं / जैसे१. काल 2. महाकाल 3. वेलम्ब 4. प्रभंजन (326) / आवास-पर्वत-सूत्र ३३०-जंबुद्दोवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाप्रो वेइयंतानो चउद्दिस लवणसमुई बायालोसंबायालीसं जोयणसहस्साई प्रोगाहेत्ता, एत्थ णं च उण्हं वेलंधरणागराईणं चत्तारि प्रावासपध्वता पण्णत्ता, त जहा-गोथूभे, उदोभासे, संखे, दगसीमे / तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, त जहा—गोथूभे, सिवए, संखे, मणोसिलाए। जम्बूद्वीप नामक द्वीप की बाहरी वेदिका के अन्तिम भाग से चारों दिशाओं में लवण-समुद्र के भीतर बयालीस-बयालीस हजार योजन जाने पर वेलंधर नागराजों के चार आवास-पर्वत कहे गये हैं। जैसे 1. गोस्तूप 2. उदावभास 3. शंख 4. दकसीम / उनमें पल्योपम की स्थिति वाले यावत् महधिक चार देव रहते हैं / जैसे१. गोस्तूप 2. शिवक 3. शंख 4. मनःशिलाक (330) / ३३१---जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लामो वेइयंतामो चउसु विदिसासु लवणसमुदं बायालीसं-बायालोसं जोयणसहस्साइं प्रोगाहेत्ता, एत्थ णं च उण्हं अणुवेलंधरणागराईणं चत्तारि आवासपवता पण्णत्ता, त जहा--कक्कोडए, विज्जुप्पभे, केलासे, अरुणप्पमे / तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिम्रोवद्वितीया परिवसंति, त जहा--कक्कोडए, कद्दमए, केलासे, अरुणप्पमे। जम्बूद्वीप नामक द्वीप को बाहरो वेदिका के अन्तिम भाग से चारों विदिशात्रों में लवणसमुद्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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